भीष्म पितामह आदर्श पितृ-भक्त, आदर्श सत्यप्रतिज्ञ, शास्त्रों के महान ज्ञाता तथा परम भगवद्भक्त थे। इनके पिता भारत वर्ष के चक्रवर्ती सम्राट् महाराज शान्तनु तथा माता भगवती गंगा जी थीं। महर्षि वसिष्ठ के शाप से ‘द्यौ’ नामक अष्टम वसु ही पितामह भीष्म के रूप में इस धराधाम पर अवतीर्ण हुए थे। बचपन में इनका नाम देवव्रत था।

एक बार इनके पिता महाराज शान्तनु कैवर्तराज की पालिता पुत्री सत्यवती के अनुपम सौन्दर्य पर मुग्ध हो गये। कैवर्तराज ने उनसे कहा कि मैं अपनी पुत्री का विवाह आपसे तभी कर सकता हूँ, जब इसके गर्भ से उत्पन्न पुत्र को ही आप अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाने का वचन दें। महाराज शान्तनु अपने शीलवान पुत्र देवव्रत के साथ अन्याय नहीं करना चाहते थे अतः उन्होंने कैवर्तराज की शर्त को अस्वीकार कर दिया, किंतु सत्यवती की आसक्ति और चिन्ता में वे उदास रहने लगे।

भीष्म प्रतिज्ञा

जब भीष्म (Bhishm) को महाराज शान्तनु की चिन्ता और उदासी का कारण मालूम हुआ, तब इन्होंने कैवर्तराज के सामने जाकर प्रतिज्ञा की कि ‘आपकी कन्या से उत्पन्न पुत्र ही राज्य का उत्तराधिकारी होगा।’ जब कैवर्तराज को इस पर भी संतोष नहीं हुआ तो इन्होंने आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करने का दूसरा प्रण किया। देवताओं ने इस भीष्म प्रतिज्ञा को सुनकर आकाश से पुष्प वर्षा की और तभीसे देवव्रत का नाम भीष्म प्रसिद्ध हुआ। इनके पिता ने इनपर प्रसन्न होकर इन्हें इच्छा-मृत्यु का दुर्लभ वर प्रदान किया।

इन्हें अपनी उस भीष्म प्रतिज्ञा के लिये भी सर्वाधिक जाना जाता है जिसके कारण इन्होंने राजा बन सकने के बावजूद आजीवन हस्तिनापुर के सिंहासन के संरक्षक की भूमिका निभाई। इन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया व ब्रह्मचारी रहे। इसी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए महाभारत में उन्होने कौरवों की तरफ से युद्ध में भाग लिया था। इन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान था। यह कौरवों के पहले प्रधान सेनापति थे। जो सर्वाधिक दस दिनो तक कौरवों के प्रधान सेनापति रहे थे। कहा जाता है कि द्रोपदी ने शरशय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह से पूछा कि उनकी आंखों के सामने चीर हरण हो रहा था और वे चुप रहे, तब भीष्म पितामह ने जवाब दिया कि उस समय मै कौरवों का नमक खाता था इस वजह से मुझे मेरी आँखों के सामने एक स्त्री के चीरहरण का कोई फर्क नही पड़ा; परंतु अब अर्जुन ने बाणों की वर्षा करके मेरा कौरवों के नमक ग्रहण से बना रक्त निकाल दिया है, अतः अब मुझे अपने पापों का ज्ञान हो रहा है अतः मुझे क्षमा करें द्रौपदी। महाभारत युद्ध खत्म होने पर इन्होंने गंगा किनारे इच्छा मृत्यु ली।

सत्यवती के गर्भ से महाराज शान्तनु को चित्रांगद और विचित्रवीर्य नाम के दो पुत्र हुए। महाराज की मृत्यु के बाद चित्रांगद राजा बनाये गये, किंतु गन्धर्वों के साथ युद्ध में उनकी मृत्यु हो गयी। विचित्रवीर्य अभी बालक थे। उन्हें सिंहासन पर आसीन करके भीष्म जी राज्य का कार्य देखने लगे। विचित्रवीर्य के युवा होने पर उनके विवाह के लिये काशिराज की तीन कन्याओं का बल पूर्वक हरण करके भीष्म जी ने संसार को अपने अस्त्र कौशल का प्रथम परिचय दिया।

काशी-नरेश की बड़ी कन्या अम्बा शाल्व से प्रेम करती थी, अतः भीष्म ने उसे वापस भेज दिया; किंतु शाल्व ने उसे स्वीकार नहीं किया। अम्बा ने अपनी दुर्दशा का कारण भीष्म को समझकर उनकी शिकायत परशुराम जी से की। परशुराम जी ने भीष्म से कहा कि ‘तुमने अम्बा का बल-पूर्वक अपहरण किया है, अतः तुम्हें इससे विवाह करना होगा, अन्यथा मुझसे युद्ध के लिये तैयार हो जाओ।’ परशुराम जी से भीष्म का इक्कीस दिनों तक भयानक युद्ध हुआ। अन्त में ऋषियों के कहने पर लोक-कल्याण के लिये परशुराम जी को ही युद्ध-विराम करना पड़ा। भीष्म अपने प्रण पर अटल रहे।

महाभारत के युद्ध में भीष्म को कौरव पक्ष के प्रथम सेना नायक होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस युद्ध में भगवान् श्री कृष्ण ने शस्त्र न ग्रहण करने की प्रतिज्ञा की थी। एक दिन भीष्म पितामह (Bhishm Pitamah) ने भगवान् को शस्त्र ग्रहण कराने की प्रतिज्ञा कर ली। इन्होंने अर्जुन को अपनी बाण-वर्षा से व्याकुल कर दिया। भक्त-वत्सल भगवान ने भक्त के प्राण की रक्षा के लिये अपनी प्रतिज्ञा को भंग कर दिया और रथ का टूटा हुआ पहिया लेकर भीष्म की ओर दौड़ पड़े। भीष्म पितामह मुग्ध हो गये भगवान्‌ की इस भक्त वत्सलता पर। अठारह दिनों के युद्ध में दस दिनों तक अकेले घमासान युद्ध करके भीष्म ने पाण्डव-पक्ष को व्याकुल कर दिया और अन्त में शिखण्डी के माध्यम से अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताकर महाभारत के इस अद्भुत योद्धा ने शर-शय्या पर शयन किया।

शास्त्र और शस्त्र के इस सूर्य को अस्त होते हुए देखकर भगवान श्री कृष्ण ने इनके माध्यम से युधिष्ठिर को धर्म के समस्त अंगों का उपदेश दिलवाया। सूर्य के उत्तरायण होने पर पीताम्बरधारी श्री कृष्ण की छवि को अपनी आँखों में बसाकर महात्मा भीष्म पितामह (Bhism Pitamah) ने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया।

पिछले जन्म में कौन थे भीष्म पितामाह? (Who was Bhishma Pitamah in Previous Birth?)

महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु यानी देवता थे. लेकिन एक बार उन्होंने बल पूर्वक एक ऋषि के गाय का हरण कर लिया था, ऐसे में ऋषि ने क्रोधित होकर उन्हें और उनके 7 भाइयों को मनुष्य के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया था. पितामह के  7 भाइयों को तो देवनदी गंगा में प्रवाहित कर श्राप मुक्त कर दिया गया, लेकिन पितामह भीष्म ने श्राप के प्रभाव से आजीवन ब्रह्मचारी रहकर अपना जीवन व्यतीत किया. 

भीष्म पितामह से संबंधित प्रश्न


भीष्म पितामह कितने भाई थे?


भीष्म सहित कुल तीन भाई थे। उनके अन्य दो भाइयों के नाम चित्रांगद और विचित्रवीर्य थे। इनमे से भीष्म पितामह भगवती गंगा जी के पुत्र थे जबकि चित्रांगद और विचित्रवीर्य सत्यवती के पुत्र थे।

भीष्म पितामह के पिता का नाम क्या था?
भीष्म महाराज शांतनु के पुत्र थे।

One thought on “भीष्म पितामह का जीवन परिचय”
  1. […] ऋषि वशिष्ठ को जब ये पता चला तो उन्होंने इन सभी को श्राप दे दिया कि ये मृत्यु लोक में जन्म लेंगे। इसके बाद सभी वासु क्षमा के लिए ऋषि के पास पहुंचे और उन्होंने उनमें से 7 को ये कहा कि वो अपने जन्म के 1 साल के अंदर ही मृत्यु लोक छोड़ देंगे और इस श्राप का पूरा दंड प्रभास को भोगना होगा। प्रभास दूसरी बार जन्म लेकर भीष्मा या भीष्म पितामह बने। […]

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