कुम्भ मेला 1954 का भगदङ
Kumbh 1954 Ka Itihas:
आजाद भारत का पहला कुंभ
3 फरवरी 1954 मौनी अमावस्या का दिन
इलाहाबाद यानि आज का प्रयागराज में आजाद भारत का पहला कुंभ लगा था । दिन था तीन फरवरी 1954 का संगम तट पर मौनी अमावस्या का स्नान चल रहा था । उपर से बारिश भी हो रही थी लाखों लोग आस्था की डुबकी लगा रहे थे तभी सुबह आठ बजे के करीब सूचना मिली की संगम तट पर प्रधानमंत्री नेहरू आ रहे हैं । प्रधानमंत्री के पहुंचने की सूचना कुंभ में आए लोगों के पास बिजली की तरह दौड़ गई, सभी लोग प्रधानमंत्री की एक झलक पाने के लिए दौड़ पड़े तो वहीं हाथी पर बैठे नागा संन्यासी लोगों को आते देख तलवार त्रिशूल लेकर लोगों को मारने दौड़ पड़े बस क्या था इनसे बचने के लिए लोग इधर-उधर भागने लगे जो जहां गिरा वहीं रह गया । अपनी जान बचाने के लिए लोग बिजली के खंभों पर चढ़ कर अपनी जान बचाने लगे ।

एक रिपोर्ट के मुताबिक 1954 के कुंभ में करीब एक हजार लोगों की मौत हो गई थी । कुंभ में मौतों का फोटो एक पत्रकार ने खींच लिया था । जो अगले दिन अखबारों की सुर्खियां बटोरने लगी । जिसके वजह से राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ने लगी जिसके वजह से प्रधानमंत्री नेहरू को संसद में बयान देना पड़ गया। बता दें कि 1954 का आजाद भारत का पहला कुंभ था ।
प्रदेश सरकार ने की थी तैयारी
आजाद भारत का पहला कुंभ लगा था तीन फरवरी 1954 को उस समय की तत्कालीन प्रदेश सरकार कुंभ को लेकर जबरदस्त तैयारी की थी प्रदेश सरकार ने संगम तट के करीब ही एक अस्थाई रेलवे स्टेशन का निर्माण भी कराया था । वहां की सड़कें भी उस समय की मशीनों से बराबर कराया था । उस समय भी तत्कालीन सरकार ने बिजली के एक हजार खम्भे लगवाये थे तो वहीं अस्पताल का भी निर्माण कराया गया था । प्रदेश सरकार ने कुंभ में 60 से 70 लाख लोगों के आने का अनुमान लगाया था । इस कुंभ भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी कुंभ में पहुंचे थे ।

कुंभ में तत्कालिन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू जी ने डुबकी नहीं लगाई।
एक किताब ‘मैं नेहरू का साया था’ में लेखक पीवी राजगोपाल लिखते हैं कि लालबहादुर शास्त्री चाहते थे कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री के तौर पर नेहरू कुंभ जाएं व वहां पर स्नान करें उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि आप मौनी अमावस्या के दिन कुंभ में जाकर स्नान करें लेकिन नेहरू ने शास्त्री जी से साफ कह दिया की मैं तय कर लिया हूं कि “मैं कुंभ तो जाउंगा जरूर लेकिन वहां स्नान क्या गंगा का पानी भी नहीं डालूंगा।” नेहरू ने शास्त्री जी से कहां की ऐसा नहीं है की मेरी आस्था गंगा जी में नहीं है । लेखक अपने किताब में लिखते हैं की मौनी अमावस्या के दिन नेहरू अपने परिवार के साथ कुंभ तो गये लेकिन उन्होंने स्नान तो छोड़िए गंगा पवित्र जल को अपने उपर नहीं छिड़का ।
कुम्भ मेला 1954 की दुर्घटना
वरिष्ठ पत्रकार एनएन की आंखों देखी
वरिष्ठ पत्रकार एनएन मुखर्जी के मुताबिक देश के पहले प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति दोनों लोगों कुंभ में एक साथ चले गये । वहां कुंभ में तैनात पुलिस अधिकारी प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के व्यवस्था में लग गये मुखर्जी अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं की उस दिन मैं कुंभ कवरेज करने के लिए एक जगह खड़ा था ।
स्नान घाट पर बैरिकेडिंग कर हजारों लोगों को पुलिस प्रशासन ने रोक रखा था । वहीं आम लोगों के साथ कुंभ में पहुंचे नागा साधुओं को भी रोका गया था । तभी प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति का वाहन त्रिवेणी की तरफ से किला घाट की तरफ निकल गई ।

इसके उपरांत बगैर किसी योजना के भीड़ को छोड़ दिया गया । उसके उपरांत भीड़ बैरिकेडिंग तोड़ घाट की तरफ जाने लगी इसी दौरान दुसरे तरफ़ से साधुओं का जुलूस भी निकल रहा था । साधु व भीड़ एकाएक आमने-सामने आ गये जिसके वजह से जुलूस बिखर गया । वहां ढलान होने के वजह से लोग गिरने लगे जो जहां गिरा गिरा ही रह गया । मुखर्जी अपने रिपोर्ट में लिखते हैं की मैं अपने आंखों से देखा की भीड़ में एक तीन साल का बच्चा गिरा है । और लोग उसके उपर से जा रहे हैं । उधर मेरे साथी मेरी चिंता कर रहे थे की कही मैं भी तो हादसे का शिकार तो नहीं हुआ । मुखर्जी के रिपोर्ट के मुताबिक हादसे के बाद प्रदेश सरकार ने कहां की इस घटना में कुछ भिखारियों की ही मौत हुई है । सरकार ने कहां की सैकड़ों की मरने की खबर गलत है । मुखर्जी लिखते हैं की मैंने उस घटना की तस्वीरें भी अधिकारियों को दिखाया था ।
हादसे के दूसरे दिन 4 फरवरी को अख़बार ने हादसे और राजभवन में हो रही पार्टी की तस्वीर छापा ।
हादसे के अगले दीन यानी चार फरवरी 1954 को एक पत्रिका जिसका नाम था अमृत बाजार ने अपने अखबार में एक तरफ हादसे जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत की तस्वीर तो दूसरी तरफ राजभवन में पार्टी की तस्वीर छाप दी । खबर छपने के बाद तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कहा कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई है जो अखबार में खबर छापा है उसे खंडन भी छापना चाहिए।

जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने पत्रकार को दी गाली
एनएन मुखर्जी ने घटना की खबर तो छाप दी लेकिन वहीं सरकार कह रही थी की ऐसा कुछ हुआ ही नहीं । मुखर्जी अपने रिपोर्ट में लिखते हैं की एक पत्रकार होने के उन्हें सबूत पेश करना था । तब एनएन मुखर्जी गांव की भेष बदलकर कर एक छाता व झोला जिसमें एक छेद था । उसी में कैमरा छुपाकर लेंस को छेद की तरफ कर जहां लाशें जलाई जा रही थी । वहां जाने की कोशिश कर रहे थे । लेकिन सरकार का आदेश था कि जहां हज़ार लोगों की लाशे जलाई जा रही वहां किसी पत्रकार को ना जाने दिया जाये। लेकिन मुखर्जी ने वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों से कहां की हमें अपनी नानी को अंतिम बार देख लेने दो । तब जाकर सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें जाने दिया वहां पहुंच कर मुखर्जी ने नानी को ढुढने के बहाने चुपके से अधजली लाशों का फोटो खिच लिया।
अगले दिन जली लाशों के फोटो के साथ छापी खबर

नएन मुखर्जी ने अगले दिन जलती लाशों के फोटो के साथ खबर छाप दी । जिसे देख तत्कालीन प्रदेश सरकार के होश उड़ गये। उन्होंने गाली देते हुए कहा कि ‘कहां है हारा—– पत्रकार इस घटना का जिक्र 1989 में छपी छायाकृति मैगजीन में भी किया गया था ।’
नेहरू ने माना हादसे के वक्त कुंभ में मौजूद था
वहीं इस घटना के बाद कुछ लोगों ने दावा किया नेहरू उस वक्त दिल्ली लौट आये थे । वहां सिर्फ राष्ट्रपति थे और किले के बुर्ज पर बैठ कर जुलूस देख रहे थे । लेकिन नेहरू 15 फरवरी 1954 को संसद में कहां की मैं बालकनी में बैठ कर जुलूस देख रहा था । मेरा अनुमान था की कुंभ में चालीस लाख लोग पहुंचे थे । बड़ा दुख हुआ की इतना बड़ा हादसा हो गया जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई।
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