राजा शांतनु और गंगा

हस्तिनापुर के राजा शांतनु न्यायप्रिय और वीर शासक थे। एक दिन वे गंगा नदी के तट पर गए तो उन्होंने वहाँ अपूर्व रूपवती स्त्री देखी। वह देवी गंगा थीं।
शांतनु ने गंगा से विवाह का प्रस्ताव रखा। गंगा ने विवाह के लिए एक शर्त रखी –
👉 “राजन! आप मुझसे कभी भी मेरे कर्मों के बारे में प्रश्न नहीं करेंगे। यदि आपने प्रश्न किया, तो मैं आपको छोड़कर चली जाऊँगी।”

शांतनु ने यह शर्त मान ली और दोनों का विवाह हुआ।


गंगा के सात पुत्रों का अंत

गंगा से एक-एक कर सात पुत्र उत्पन्न हुए। जैसे ही वे जन्म लेते, गंगा उन्हें नदी में बहा देती।
राजा शांतनु यह सब देखकर दुखी होते, लेकिन शर्त के कारण चुप रहे।

जब आठवाँ पुत्र हुआ और गंगा उसे भी बहाने लगीं, तब शांतनु स्वयं को रोक न सके और बोले –
👉 “देवी! आप बार-बार मेरे पुत्रों को क्यों डुबो रही हैं?”

गंगा मुस्कुराईं और बोलीं –
👉 “राजन! आपसे वचनभंग हुआ है, अब मैं चली जाऊँगी। यह आठवाँ पुत्र जीवित रहेगा।”
फिर गंगा पुत्र को लेकर चली गईं। यही बालक आगे चलकर देवरथ और बाद में भीष्म कहलाया।


गंगा का रहस्य

गंगा ने शांतनु को बताया कि ये आठों पुत्र वास्तव में आठ वसु (देवगण) थे, जिन्हें ऋषि वशिष्ठ ने शाप दिया था कि वे मनुष्य योनि में जन्म लेंगे।
गंगा ने उन्हें मुक्ति देने के लिए नदी में प्रवाहित किया।
लेकिन आठवें वसु प्रभास को पूरा जीवन मनुष्य रूप में रहना था। यही प्रभास देवरथ (भीष्म) के रूप में धरती पर जन्मे।


शांतनु और सत्यवती

कई वर्ष बाद राजा शांतनु शिकार के लिए गंगा तट पर गए। वहाँ उन्हें सुगंध की देवी जैसी रूपवती कन्या मिली। वह थीं सत्यवती, जो मछुआरे की पुत्री थीं।

शांतनु ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा।
सत्यवती के पिता ने कहा –
👉 “राजन! विवाह तो होगा, लेकिन एक शर्त है – सत्यवती से जन्मा पुत्र ही हस्तिनापुर का राजा बनेगा।”

यह सुनकर शांतनु दुखी हुए, क्योंकि पहले से ही उनका पुत्र देवरथ (गंगा पुत्र) था।


भीष्म प्रतिज्ञा

जब देवरथ (गंगा पुत्र) को अपने पिता की व्यथा का पता चला, तो उन्होंने अपने पिता की खुशी के लिए प्रतिज्ञा ली –
👉 “मैं आजीवन विवाह नहीं करूँगा, और हस्तिनापुर का सिंहासन केवल सत्यवती की संतान को मिलेगा।”

यह भयंकर प्रतिज्ञा देखकर स्वर्ग से देवता प्रकट हुए और बोले –
👉 “देवरथ! तुम्हारी यह प्रतिज्ञा भीषण है, इसलिए आज से तुम्हारा नाम भीष्म होगा।”

यही से वे भीष्म पितामह कहलाए।


निष्कर्ष

राजा शांतनु और गंगा की कथा केवल प्रेम और वचन का ही नहीं, बल्कि त्याग का अद्भुत उदाहरण है।

  • गंगा ने शापित देवताओं को मुक्ति दी।
  • शांतनु ने प्रेम के लिए मौन सहा।
  • और भीष्म ने अपने पिता के सुख के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया।

भीष्म की प्रतिज्ञा ही महाभारत के इतिहास की नींव बनी।


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