द्रौपदी विवाह के बाद

द्रौपदी के स्वयंवर के बाद पांडवों की पहचान खुल गई।
भीष्म पितामह और धृतराष्ट्र ने पांडवों को हस्तिनापुर वापस बुलाया।
वहाँ सबने उनका आदर किया, लेकिन दुर्योधन को यह सब पसंद नहीं आया।
राजनीतिक तनाव बढ़ने लगा।


राज्य का बँटवारा

धृतराष्ट्र ने शांति बनाए रखने के लिए राज्य का बँटवारा किया।

  • हस्तिनापुर → कौरवों को दिया गया।
  • खांडवप्रस्थ → पांडवों को दिया गया।

👉 खांडवप्रस्थ एक सुनसान और बंजर जगह थी, जहाँ कोई रहना नहीं चाहता था।


कृष्ण का मार्गदर्शन

पांडव निराश थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया –
👉 “यदि तुम परिश्रम और धर्म के मार्ग पर चलो तो यह बंजर भूमि भी स्वर्ग बन सकती है।”

पांडवों ने मन लगाकर खांडवप्रस्थ को बसाना शुरू किया।


इंद्रप्रस्थ नगरी का निर्माण

विश्वकर्मा की सहायता से खांडवप्रस्थ को एक भव्य नगरी में बदल दिया गया।
यह नगर इतना सुंदर और समृद्ध था कि उसका नाम पड़ा — इंद्रप्रस्थ

  • चौड़ी सड़कें,
  • सुंदर महल,
  • उद्यान और तालाब,
  • और चारों ओर समृद्धि।

पांडवों ने वहाँ से शासन करना शुरू किया।


माया सभा का निर्माण

इंद्रप्रस्थ में असुर वास्तुकार मय दानव ने एक अद्भुत सभा का निर्माण किया।
यह सभा इतनी विलक्षण थी कि इसमें भ्रम उत्पन्न करने वाली कलाएँ थीं –

  • जहाँ पानी लगता था, वहाँ सूखी भूमि होती,
  • और जहाँ भूमि लगती, वहाँ जल भरा होता।

👉 यही सभा आगे चलकर दुर्योधन के अपमान का कारण बनी।


युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ

समय आने पर युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ करने का संकल्प लिया।
उनका उद्देश्य था कि वे सम्राट बनें और सभी राजा उनकी अधीनता स्वीकार करें।
भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव ने चारों दिशाओं में विजय अभियान चलाकर सभी राजाओं को युधिष्ठिर के अधीन कर दिया।

राजसूय यज्ञ बड़े धूमधाम से सम्पन्न हुआ।
युधिष्ठिर को सम्राट की उपाधि मिली।


दुर्योधन का अपमान

राजसूय यज्ञ के दौरान दुर्योधन माया सभा में गया।
वहाँ उसे भ्रम हो गया —
वह सूखी जगह को पानी समझकर कपड़े उठा बैठा, और पानी को भूमि समझकर गिर पड़ा।

सभागृह में उपस्थित द्रौपदी ने हँसते हुए कहा –
👉 “अंधे का पुत्र भी अंधा ही होता है।”

यह बात दुर्योधन के हृदय को चुभ गई।
यहीं से उसके मन में पांडवों और द्रौपदी के प्रति गहरी ईर्ष्या और प्रतिशोध की भावना उत्पन्न हुई।


निष्कर्ष

इंद्रप्रस्थ का निर्माण और युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ पांडवों की शक्ति और समृद्धि का प्रतीक था।
👉 लेकिन दुर्योधन का अपमान और ईर्ष्या महाभारत की कथा को आगे और भी भयानक दिशा में ले गई।


पिछला भाग (भाग 7) : द्रौपदी स्वयंवर – अर्जुन का विजय
अगला भाग (भाग 9) : राजसूय यज्ञ और दुर्योधन का अपमान


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *