युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ

इंद्रप्रस्थ नगरी के समृद्ध होने के बाद युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ करने का संकल्प लिया।
राजसूय यज्ञ का उद्देश्य था —
👉 “सभी राजाओं को अपनी अधीनता स्वीकार कराकर स्वयं सम्राट बनना।”

भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव चारों दिशाओं में अभियान पर गए और अनेक राजाओं को जीतकर युधिष्ठिर के अधीन कर लिया।
सबसे बड़ा और कठिन युद्ध हुआ जरासंध के साथ, जिसे भीम ने द्वंद्व युद्ध में मारकर परास्त किया।


राजसूय यज्ञ का आयोजन

राजसूय यज्ञ बड़े वैभव और भव्यता से सम्पन्न हुआ।
सभी दिशाओं से राजा और महारथी इसमें शामिल हुए।
सभा में यह प्रश्न उठा कि “इस यज्ञ का अग्रपूजन किसका किया जाए?”

भीष्म पितामह ने कहा –
👉 “इस यज्ञ में सबसे बड़ा स्थान भगवान श्रीकृष्ण का है।”

फिर श्रीकृष्ण का अग्रपूजन किया गया।


शिशुपाल वध

शिशुपाल (चेदिराज) को यह बात बुरी लगी।
उसने श्रीकृष्ण का अपमान किया और अपशब्द बोले।
तब श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया।

सभा में उपस्थित सभी राजाओं ने इसे धर्मसम्मत माना।


दुर्योधन का अपमान

राजसूय यज्ञ के बाद जब सब लोग माया सभा में गए, तो दुर्योधन भ्रमित हो गया।

  • जहाँ पानी था, उसे भूमि समझकर गिर पड़ा।
  • और जहाँ भूमि थी, उसे पानी समझकर कपड़े उठा बैठा।

सभा में बैठे सभी लोग हँसने लगे।
द्रौपदी ने व्यंग्य में कहा –
👉 “अंधे का पुत्र भी अंधा ही होता है।”


दुर्योधन की प्रतिज्ञा

द्रौपदी का यह वचन दुर्योधन के हृदय में गहरे तीर की तरह लगा।
वह अपमानित और क्रोधित होकर बोला –
👉 “मैं इस अपमान का प्रतिशोध अवश्य लूँगा।
मैं पांडवों को दास बनाकर रहूँगा।”

यहीं से दुर्योधन ने जुए के खेल द्वारा पांडवों को फँसाने की योजना बनाई।


निष्कर्ष

राजसूय यज्ञ ने युधिष्ठिर को सम्राट बना दिया, लेकिन इसी यज्ञ और सभा में हुए दुर्योधन के अपमान ने महाभारत के युद्ध की नींव रख दी।
👉 यह घटना आगे आने वाले जुए का खेल और द्रौपदी चीरहरण की प्रस्तावना बनी।


पिछला भाग (भाग 8) : खांडवप्रस्थ से इंद्रप्रस्थ – पांडवों का राज्याभिषेक
अगला भाग (भाग 10) : जुए का खेल और द्रौपदी चीरहरण


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