वनवास की शुरुआत

जुए के खेल और द्रौपदी के अपमान के बाद पांडवों को 13 वर्ष का वनवास और फिर 1 वर्ष का अज्ञातवास भुगतना पड़ा।
पांडव अपनी माता कुंती और द्रौपदी के साथ वन में चले गए।
वहाँ उन्होंने अनेक कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन धर्म और धैर्य के साथ जीवन बिताते रहे।


वनवास के प्रसंग

वनवास के दौरान पांडव अनेक ऋषियों और तपस्वियों से मिले।
उन्होंने धर्म, नीति और अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त किया।
इसी काल में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं, जिनमें कीचक वध और अर्जुन का दिव्यास्त्र प्राप्त करना सबसे प्रसिद्ध हैं।


कीचक का अत्याचार और वध

वनवास के दौरान पांडव विराट नगर में भी रहे।
वहाँ के राजा विराट की सभा में सेनापति कीचक था, जो अत्यंत बलवान और दुराचारी था।
उसकी दृष्टि द्रौपदी पर पड़ी और उसने द्रौपदी को अपमानित करने का प्रयास किया।

द्रौपदी ने भीम से सहायता मांगी।
भीम ने रात्रि में गुप्त रूप से कीचक को एकांत में बुलाया और भयंकर युद्ध के बाद उसका वध कर दिया।

👉 इस प्रकार द्रौपदी की रक्षा हुई और कीचक का आतंक समाप्त हुआ।


अर्जुन का स्वर्ग गमन

इसी बीच अर्जुन ने दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की।
उन्होंने पर्वतराज हिमालय में जाकर भगवान शिव की घोर आराधना की।

जब अर्जुन तपस्या कर रहे थे, तब एक दिन एक किरात (शिकारी) उनके सामने आया।
वह वास्तव में भगवान शिव थे।
अर्जुन और शिव के बीच भीषण युद्ध हुआ।
अर्जुन ने पराक्रम दिखाया, लेकिन अंततः भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें पाशुपतास्त्र प्रदान किया।

इसके बाद अर्जुन स्वर्ग गए और वहाँ इंद्र से अनेक दिव्यास्त्र प्राप्त किए।


पांडवों का धैर्य

वनवास के दौरान भी पांडवों ने धर्म का पालन किया और किसी प्रकार अन्याय या अधर्म का मार्ग नहीं अपनाया।
युधिष्ठिर ने धैर्यपूर्वक सब सहा, भीम ने बल से रक्षा की, अर्जुन ने दिव्यास्त्र जुटाए और नकुल-सहदेव ने आयुर्वेद व पशुपालन में दक्षता दिखाई।


निष्कर्ष

वनवास के दौरान पांडवों ने अनेक कठिनाइयों का सामना किया।
👉 लेकिन इसी समय उन्होंने वह शक्ति, अनुभव और दिव्यास्त्र जुटाए जो आगे चलकर महाभारत युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाने वाले थे।


पिछला भाग (भाग 10) : जुए का खेल और द्रौपदी चीरहरण
अगला भाग (भाग 12) : अज्ञातवास और विराट युद्ध


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