द्रोणाचार्य का नेतृत्व
भीष्म पितामह के शर-शैया पर जाने के बाद कौरव सेना का नेतृत्व द्रोणाचार्य ने संभाला।
उनके नेतृत्व में कौरवों ने पांडवों पर भीषण आक्रमण किया।
द्रोणाचार्य अपराजेय प्रतीत हो रहे थे और पांडवों की सेना भारी संकट में थी।
अभिमन्यु का प्रवेश
एक दिन कौरवों ने पांडव सेना को हराने के लिए चक्रव्यूह की रचना की।
पांडवों में से केवल अभिमन्यु (अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र) को चक्रव्यूह में प्रवेश करने की विधि आती थी।
लेकिन उसे बाहर निकलने की पूरी विधि नहीं मालूम थी।
अर्जुन उस दिन दूर मोर्चे पर युद्ध कर रहे थे।
इसलिए अभिमन्यु ने वीरतापूर्वक रथ चढ़ाया और चक्रव्यूह में प्रवेश कर गया।
अभिमन्यु की वीरगति
अभिमन्यु अकेले ही भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और दुर्योधन जैसे महारथियों से लड़ा।
उसने असाधारण पराक्रम दिखाया।
लेकिन कौरवों ने नियम तोड़कर मिलकर उस पर प्रहार किया।
दुर्योधन के पुत्र ने उसका रथ तोड़ा, कर्ण ने उसका धनुष काटा और अंततः अभिमन्यु को नृशंसता से मार दिया गया।
👉 अभिमन्यु का वध महाभारत युद्ध का सबसे क्रूर प्रसंग माना जाता है।
अर्जुन का शपथ
जब अर्जुन को यह समाचार मिला, तो वे शोक और क्रोध से व्याकुल हो गए।
उन्होंने प्रतिज्ञा की –
👉 “मैं कल सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध अवश्य करूँगा, अन्यथा अग्नि में प्रवेश कर जाऊँगा।”
द्रोणाचार्य की मृत्यु
अगले दिनों में युद्ध और भी भयानक हुआ।
द्रोणाचार्य को मारना अत्यंत कठिन था।
तब श्रीकृष्ण ने युक्ति बताई –
👉 “द्रोण केवल शस्त्र तब त्यागेंगे जब उन्हें लगेगा कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मर चुका है।”
भीम ने हाथी ‘अश्वत्थामा’ को मारकर घोषणा की –
👉 “अश्वत्थामा मारा गया।”
युधिष्ठिर ने सच और झूठ मिलाकर कहा –
👉 “हाँ, अश्वत्थामा मारा गया… (लेकिन हाथी)।”
यह सुनकर द्रोण शोकाकुल हो गए और उन्होंने शस्त्र त्याग दिए।
तब धृष्टद्युम्न ने अवसर पाकर उनका वध कर दिया।
निष्कर्ष
- अभिमन्यु की वीरगति ने पांडवों को गहरा आघात दिया।
- अर्जुन की प्रतिज्ञा और द्रोणाचार्य की मृत्यु ने युद्ध को और भी भीषण बना दिया।
👉 यही प्रसंग आगे अर्जुन और जयद्रथ के निर्णायक युद्ध की भूमिका बना।
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