युद्धोपरांत पीड़ा
कौरवों के संहार के बाद भले ही पांडव विजयी हुए, लेकिन उनका मन शोक और पश्चाताप से भरा था।
उन्होंने अपने परिजनों, गुरुजनों और पुत्रों को खो दिया था।
युधिष्ठिर बार-बार कहते थे –
👉 “यह कैसी विजय है, जिसमें अपने ही कुटुंब का नाश हो गया?”
द्रौपदी और उत्तरा का दुख
द्रौपदी अपने पाँचों पुत्रों (उपपांडवों) की मृत्यु से विलाप कर रही थीं।
अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा गर्भवती थीं, लेकिन अभिमन्यु के वध के बाद वे भी शोकग्रस्त थीं।
परीक्षित का जन्म
अश्वत्थामा ने प्रतिशोध स्वरूप उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया था।
श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा की।
👉 यही शिशु परीक्षित कहलाया।
परीक्षित का जन्म पांडव वंश की निरंतरता का प्रतीक था।
पांडवों का शासन
युधिष्ठिर ने धर्मपूर्वक राज्य चलाया।
- भीम न्याय और रक्षा में सहायक बने,
- अर्जुन सेना और राजकाज में,
- नकुल और सहदेव कृषि, पशुपालन और आयुर्वेद में,
- द्रौपदी धर्मपत्नी के रूप में सबका साथ देती रहीं।
हस्तिनापुर धीरे-धीरे फिर से समृद्ध होने लगा।
धृतराष्ट्र और गांधारी
धृतराष्ट्र और गांधारी युद्ध के बाद पांडवों के साथ हस्तिनापुर में रहे।
गांधारी ने शोक में पांडवों को श्राप दिया कि उनका सुख अधिक दिन नहीं टिकेगा।
धृतराष्ट्र ने भीम को गले लगाते समय अपनी क्रोधाग्नि से उसे मारने का प्रयास किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने चमत्कार से भीम की रक्षा की।
निष्कर्ष
पांडवों ने धर्मपूर्वक राज्य चलाया और परीक्षित का जन्म हुआ, जिससे पांडव वंश आगे बढ़ सका।
👉 लेकिन युद्ध की पीड़ा और शोक उनके जीवन का हिस्सा बना रहा।
✅ पिछला भाग (भाग 21) : पांडवों का राज्याभिषेक और शांतिपर्व
✅ अगला भाग (भाग 23) : पांडवों का स्वर्गारोहण
Tags:
Mahabharat, Pandav, Parikshit, Draupadi, Uttara, Pandav Vansh, Mahabharata Story