युद्धोपरांत द्वारका

महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने धर्मराज्य स्थापित किया।
लेकिन धीरे-धीरे द्वारका में यदुवंशियों के बीच कलह और अहंकार बढ़ने लगा।
श्रीकृष्ण जानते थे कि यह यदुवंश स्वयं अपने विनाश का कारण बनेगा।


गांधारी का श्राप

महाभारत युद्ध के बाद जब गांधारी ने श्रीकृष्ण को देखा, तो उन्होंने शोक और क्रोध में कहा –
👉 “हे माधव! यदि तुम चाहते तो यह विनाश टल सकता था।
मैं तुम्हें श्राप देती हूँ कि तुम्हारा यदुवंश भी आपसी कलह से नष्ट हो जाएगा।”

श्रीकृष्ण ने श्राप को स्वीकार किया और बोले –
👉 “जो होना है, वही होगा। मैं भी शीघ्र पृथ्वी से विदा लूँगा।”


यदुवंश का विनाश ( Yaduvansh Ka Vinash)

एक दिन यदुवंशी युवराजों में मदिरापान के बाद झगड़ा हो गया।
उन्होंने घातक अस्त्र उठाए और आपस में ही लड़ने लगे।
थोड़े ही समय में पूरा यदुवंश आपसी संघर्ष में समाप्त हो गया।


बलराम का प्रस्थान

श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ने योगबल से अपने प्राण त्याग दिए।
उनका देहांत समुद्र तट पर हुआ।


श्रीकृष्ण का महाप्रयाण

श्रीकृष्ण अकेले वन में विश्राम कर रहे थे।
तभी एक शिकारी जरा ने उन्हें हिरण समझकर तीर चला दिया।
वह तीर श्रीकृष्ण के पैर में लगा।
जरा जब पास आया तो भयभीत हो गया, लेकिन श्रीकृष्ण ने मुस्कुराकर कहा –
👉 “यह सब नियति का खेल है, चिंता मत करो।”

फिर श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य स्वरूप का स्मरण किया और धीरज के साथ देह त्याग दी।


द्वारका का डूबना

श्रीकृष्ण के प्रस्थान के बाद समुद्र ने धीरे-धीरे द्वारका नगरी को निगल लिया।
समुद्र की लहरों में डूबकर द्वारका समाप्त हो गई।


निष्कर्ष

श्रीकृष्ण का प्रस्थान महाभारत का अंतिम अध्याय है।
👉 उन्होंने पृथ्वी पर धर्म की स्थापना की और फिर अपने लोक लौट गए।
उनके जाने के बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है।


पिछला भाग (भाग 23) : पांडवों का स्वर्गारोहण
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