दुर्योधन की योजना

राजसूय यज्ञ के बाद दुर्योधन अपमानित और प्रतिशोध की आग में जल रहा था।
उसने अपने मामा शकुनि के साथ मिलकर पांडवों को नष्ट करने की योजना बनाई।
शकुनि पासे के खेल (जुए) का माहिर था।


युधिष्ठिर को जुए का निमंत्रण

धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को दरबार में आमंत्रित किया।
युधिष्ठिर ने धर्मपालन के कारण निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
सभा में शकुनि पासे खेल रहा था और दुर्योधन उसके पीछे चालें बुन रहा था।


युधिष्ठिर की हार

खेल में युधिष्ठिर एक-एक कर सब कुछ हार गए —

  • अपना सोना-चाँदी और राज्य,
  • अपने भाई भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव,
  • स्वयं को,
  • और अंत में द्रौपदी को भी दाँव पर लगा दिया।

सभा स्तब्ध रह गई, पर खेल चलता रहा।


द्रौपदी का अपमान

दुर्योधन ने द्रौपदी को दरबार में बुलाने का आदेश दिया।
दु:शासन उसे घसीटकर सभा में ले आया।

द्रौपदी ने पूछा –
👉 “युधिष्ठिर पहले ही स्वयं को हार चुके हैं, तो क्या वे मुझे दाँव पर लगा सकते थे?”

सभा में किसी ने उत्तर नहीं दिया।

दुर्योधन ने द्रौपदी का अपमान करते हुए उसे दासी कहा और उसका वस्त्रहरण करने का आदेश दिया।
दु:शासन ने द्रौपदी का वस्त्र उतारना शुरू किया।


श्रीकृष्ण की कृपा

द्रौपदी ने दोनों हाथ उठाकर श्रीकृष्ण को पुकारा।
तभी उनके वस्त्र अनंत रूप से बढ़ते गए।
दु:शासन ने बहुत प्रयास किया, परंतु द्रौपदी की लाज बच गई।

सभा में सब स्तब्ध रह गए।
भीष्म, विदुर और अन्य वृद्धजन मौन रहे, परंतु उनके मन में पीड़ा थी।


भीम की प्रतिज्ञा

इस अपमान से आक्रोशित होकर भीम ने शपथ ली –
👉 “मैं दु:शासन की छाती फाड़कर उसका रक्त पीऊँगा और दुर्योधन की जंघा तोड़ दूँगा।”


वनवास और अज्ञातवास

सभा में अंततः निर्णय हुआ कि पांडवों को 13 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास भोगना होगा।
यदि अज्ञातवास में उनकी पहचान हो गई, तो उन्हें फिर से 13 वर्ष वनवास करना पड़ेगा।


निष्कर्ष

जुए का खेल और द्रौपदी चीरहरण महाभारत की कथा का सबसे बड़ा turning point है।
👉 यह घटना पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध की जड़ बनी।


पिछला भाग (भाग 9) : राजसूय यज्ञ और दुर्योधन का अपमान
अगला भाग (भाग 11) : वनवास की शुरुआत – कीचक वध और अर्जुन का दिव्यास्त्र प्राप्त करना


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