अज्ञातवास के बाद पांडवों की माँग
13 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद पांडवों ने अपना राज्य वापस माँगा।
वे धर्म के मार्ग पर चलना चाहते थे और युद्ध से बचना चाहते थे।
युधिष्ठिर ने दूत भेजकर दुर्योधन से कहा –
👉 “हमें हमारा राज्य लौटा दो, ताकि हम शांति से रह सकें।”
लेकिन दुर्योधन ने हठपूर्वक कहा –
👉 “मैं सुई की नोक जितनी भूमि भी पांडवों को नहीं दूँगा।”
श्रीकृष्ण का शांति प्रयास
पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण को दूत बनाकर हस्तिनापुर भेजा।
श्रीकृष्ण ने कौरव सभा में कहा –
👉 “यदि तुम पूरा राज्य नहीं देना चाहते, तो केवल पाँच गाँव ही दे दो –
पाँच पांडव पाँच गाँव में संतुष्ट रहेंगे।”
लेकिन दुर्योधन क्रोधित हो गया और बोला –
👉 “मैं सुई की नोक जितनी भूमि भी देने को तैयार नहीं हूँ।”
दुर्योधन का अहंकार
दुर्योधन ने यहाँ तक कहा कि –
👉 “मैं श्रीकृष्ण को बंधक बनाकर कैद कर लूँगा।”
श्रीकृष्ण ने अपना विराट रूप धारण कर दिया।
सभा में उपस्थित भीष्म, द्रोण और विदुर ने उनका दिव्य स्वरूप देखा और भयभीत हो गए।
युद्ध की घोषणा
जब शांति प्रयास असफल हो गया, तो सबने समझ लिया कि अब युद्ध अवश्य होगा।
भीष्म, द्रोण और कर्ण जैसे महारथी कौरवों की ओर से, और पांडवों की ओर से श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन जैसे योद्धा मैदान में उतरेंगे।
सेना का बँटवारा
श्रीकृष्ण ने दोनों पक्षों को विकल्प दिया –
- एक ओर मेरी नारायणी सेना,
- दूसरी ओर मैं स्वयं, लेकिन बिना शस्त्र उठाए।
अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुना और दुर्योधन ने नारायणी सेना ले ली।
👉 इस प्रकार कुरुक्षेत्र युद्ध की तैयारी पूर्ण हुई।
निष्कर्ष
श्रीकृष्ण ने हर संभव प्रयास किया कि युद्ध न हो।
👉 लेकिन दुर्योधन के अहंकार और अन्याय ने युद्ध को निश्चित कर दिया।
अब इतिहास का सबसे भीषण युद्ध – कुरुक्षेत्र युद्ध – होने ही वाला था।
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