अर्जुन की प्रतिज्ञा

अभिमन्यु के वध के बाद अर्जुन शोक और क्रोध से भर गए।
उन्होंने शपथ ली –
👉 “यदि मैं कल सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध न कर पाया, तो अग्नि में प्रवेश कर प्राण त्याग दूँगा।”

जयद्रथ वही था जिसने चक्रव्यूह में अभिमन्यु को बाहर निकलने से रोका था।


जयद्रथ की रक्षा

जयद्रथ को बचाने के लिए दुर्योधन ने पूरे दिन उसकी सुरक्षा हेतु सेना का घेरा बना दिया।
भीष्म और द्रोण तो अब युद्धभूमि से हट चुके थे, परंतु कर्ण, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और अन्य महारथियों ने जयद्रथ की रक्षा की।
पांडवों को अर्जुन को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर युद्ध करना पड़ा।


सूर्यास्त का समय

दिनभर भयंकर युद्ध हुआ।
सूर्यास्त नज़दीक आया तो अर्जुन व्याकुल हो गए।
ऐसा लगा कि वे प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर पाएँगे।

तभी श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया से सूर्य को बादलों में ढँक दिया।
कौरवों को लगा कि सूर्यास्त हो गया है और वे जयद्रथ की रक्षा छोड़कर ढीले पड़ गए।


जयद्रथ वध

तभी श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा –
👉 “हे पार्थ! अभी अवसर है, अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करो।”

अर्जुन ने तुरंत अपना गाण्डीव धनुष उठाया और दिव्यास्त्र से जयद्रथ का वध कर दिया।
इस प्रकार अर्जुन की प्रतिज्ञा पूर्ण हुई।


कर्ण और अर्जुन का भीषण युद्ध

जयद्रथ वध के बाद युद्ध और भी भीषण हो गया।
कर्ण और अर्जुन आमने-सामने आए।
दोनों ने दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया, जिससे आकाश तक काँप उठा।

  • अर्जुन के बाणों से कर्ण का रथ बार-बार पीछे खिसकता।
  • कर्ण ने भी अर्जुन को घायल किया।

युद्ध का निर्णय अंतिम दिनों में होना था।


कर्ण का श्राप और दुर्भाग्य

कर्ण को पहले ही एक ब्राह्मण से श्राप मिला था कि जब वह सबसे बड़ी आवश्यकता में दिव्यास्त्र चलाना चाहेगा, तो वह उसे स्मरण नहीं कर पाएगा।
इसी प्रकार एक अन्य श्राप था कि युद्ध के समय उसका रथ धँस जाएगा।
यही श्राप उसके अंत का कारण बने।


निष्कर्ष

जयद्रथ वध ने पांडवों की सेना को नया उत्साह दिया और कौरवों का मनोबल तोड़ दिया।
👉 वहीं अर्जुन और कर्ण का युद्ध महाभारत का सबसे रोमांचक और निर्णायक प्रसंग बनने वाला था।


पिछला भाग (भाग 16) : द्रोण पर्व – अभिमन्यु वध और द्रोणाचार्य की मृत्यु
अगला भाग (भाग 18) : कर्ण पर्व – कर्ण की वीरगति


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *