कर्ण का नेतृत्व
द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद कौरव सेना का नेतृत्व कर्ण ने संभाला।
वह दुर्योधन का सबसे प्रिय मित्र और सेनापति बना।
कर्ण अत्यंत पराक्रमी और दानवीर था, लेकिन उसके जीवन में श्राप और दुर्भाग्य सदैव बाधक रहे।
कर्ण–अर्जुन का सामना
कुरुक्षेत्र युद्ध के 17वें दिन कर्ण और अर्जुन आमने-सामने आए।
दोनों महारथियों के बीच इतना भीषण युद्ध हुआ कि पूरा कुरुक्षेत्र थर्रा उठा।
- कर्ण के बाणों ने अर्जुन के रथ को बार-बार पीछे धकेला।
- अर्जुन के प्रहार से कर्ण के रथ का ध्वज और सारथी घायल हुए।
- दोनों ने दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया।
सभ्यता के इतिहास में यह सबसे बड़ा द्वंद्व माना गया।
कर्ण का श्राप
युद्ध के दौरान कर्ण का रथ का पहिया कीचड़ में धँस गया।
वह नीचे उतरकर उसे निकालने लगा और अर्जुन से विराम माँगा।
👉 लेकिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा –
“हे पार्थ! जब अभिमन्यु निहत्थे और अकेले थे, तब इन लोगों ने नियम नहीं माना।
आज न्याय यही है कि तुम भी युद्ध जारी रखो।”
कर्ण की मृत्यु
अर्जुन ने कृष्ण के संकेत पर अपना अंजलिका अस्त्र चलाया।
वह बाण सीधा कर्ण के हृदय को भेद गया।
कर्ण भूमि पर गिर पड़े और वहीं वीरगति को प्राप्त हुए।
कर्ण का सत्य
युद्धभूमि पर ही श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर और अर्जुन को बताया कि कर्ण वास्तव में कुंती का ज्येष्ठ पुत्र था।
👉 यानी कर्ण पांडवों का सबसे बड़ा भाई था।
यह सुनकर पांडव शोक और अपराधबोध से भर गए।
निष्कर्ष
कर्ण की वीरगति ने महाभारत युद्ध को निर्णायक मोड़ दिया।
👉 यह युद्ध केवल मित्रों और शत्रुओं का नहीं, बल्कि भाइयों के बीच का युद्ध बन गया था।
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