शल्य का नेतृत्व
कर्ण की मृत्यु के बाद कौरव सेना का नेतृत्व मद्रदेश के राजा शल्य ने संभाला।
शल्य स्वयं महान रथी थे, लेकिन मन से पांडवों के पक्षधर थे।
कौरवों का मनोबल लगातार गिर रहा था और पांडवों की विजय निश्चित लग रही थी।
दुर्योधन का आक्रोश
कौरव सेना लगभग नष्ट हो चुकी थी।
दुर्योधन ने अपने शेष सैनिकों के साथ अंतिम युद्ध किया।
लेकिन जब उसने देखा कि सब उसका साथ छोड़ चुके हैं, तो वह अकेला ही युद्धभूमि से भागकर सरोवर में छिप गया।
पांडवों का सामना
भीम ने दुर्योधन को सरोवर से बाहर आने के लिए ललकारा।
दुर्योधन बाहर आया और बोला –
👉 “मैं आप पाँचों से एक-एक करके गदा युद्ध करूँगा।”
पांडवों ने भीम को भेजा, क्योंकि भीम गदायुद्ध में सबसे प्रवीण थे।
भीम और दुर्योधन का गदायुद्ध
भीम और दुर्योधन के बीच भयंकर गदायुद्ध हुआ।
दोनों की गदाएँ टकराकर पर्वत की तरह ध्वनि उत्पन्न कर रही थीं।
दुर्योधन की गति, बल और पराक्रम असाधारण था।
भीम भी पीछे हटने वाले नहीं थे।
श्रीकृष्ण ने संकेत दिया –
👉 “भीम! जंघा पर प्रहार करो, क्योंकि दुर्योधन ने द्रौपदी को जंघा पर बैठने के लिए अपमानित किया था।”
भीम ने उसी क्षण दुर्योधन की जंघा पर गदा दे मारी।
दुर्योधन का शरीर टूट गया और वह भूमि पर गिर पड़ा।
दुर्योधन का अंत
भीम ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की –
👉 “मैं दुर्योधन की जंघा तोड़ूँगा।”
दुर्योधन मरणासन्न पड़ा रहा।
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा ने रात में उसका साथ दिया, लेकिन युद्ध की पराजय निश्चित हो चुकी थी।
निष्कर्ष
दुर्योधन का वध महाभारत युद्ध का अंतिम निर्णायक क्षण था।
👉 इसके साथ ही कौरवों की हार और पांडवों की विजय निश्चित हो गई।
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