युद्ध का अंत

अठारह दिन चले भीषण कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद कौरवों का संपूर्ण विनाश हो चुका था।
सिर्फ कुछ ही योद्धा बचे थे – अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा।
👉 पांडव विजयी हुए, लेकिन यह विजय अश्रुओं और पीड़ा से भरी थी।
अपने भाई, गुरुजनों और पुत्रों को खोकर पांडव शोकमग्न थे।


युधिष्ठिर का राज्याभिषेक

श्रीकृष्ण और व्यासजी ने युधिष्ठिर को समझाया कि अब धर्म के मार्ग पर राज्य चलाना उनका कर्तव्य है।
हस्तिनापुर में बड़े उत्सव के साथ युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ।
पांडव राजसिंहासन पर बैठे और कुंती, द्रौपदी तथा सभी जन हर्षित हुए।


भीष्म पितामह के उपदेश

भीष्म पितामह अभी भी शर-शैया पर सूर्य उत्तरायण की प्रतीक्षा कर रहे थे।
पांडव उनसे मिलने गए।
भीष्म ने युधिष्ठिर को राजनीति, नीति, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का विस्तृत ज्ञान दिया।

इन उपदेशों को ही महाभारत में शांतिपर्व और अनुशासन पर्व कहा गया है।
युधिष्ठिर ने भीष्म के वचनों को जीवन का मार्गदर्शन माना।


भीष्म का महाप्रयाण

जब सूर्य उत्तरायण हुआ, भीष्म ने गंगा की स्तुति की और श्रीकृष्ण की उपस्थिति में प्राण त्याग दिए।
👉 उनका देहांत महाभारत के सबसे पवित्र और भावुक प्रसंगों में से एक है।


निष्कर्ष

पांडवों की विजय के साथ युद्ध का अंत हुआ, लेकिन यह विजय दुख और बलिदानों से भरी थी।
👉 युधिष्ठिर का राज्याभिषेक और भीष्म पितामह के उपदेश आने वाली पीढ़ियों के लिए धर्म और नीति का मार्गदर्शन बन गए।


पिछला भाग (भाग 20) : अश्वत्थामा का प्रतिशोध – उपपांडवों की हत्या
अगला भाग (भाग 22) : पांडवों का उत्तर जीवन और परीक्षित का जन्म


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