युद्ध के बाद का जीवन

महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने धर्मपूर्वक राज्य किया।
युधिष्ठिर का राज्यकाल लंबा और सुख-शांति से भरा हुआ था, लेकिन युद्ध की पीड़ा और अपनों की क्षति कभी मिट न सकी।
समय बीतने पर उन्होंने परीक्षित को उत्तराधिकारी घोषित किया।


राज्य त्याग का निर्णय

जब परीक्षित युवराज बने, तब युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से कहा –
👉 “अब हमें इस संसार के मोह को त्यागकर स्वर्गारोहण की यात्रा करनी चाहिए।”

सभी पांडव और द्रौपदी इस निर्णय से सहमत हुए।
वे हिमालय की ओर प्रस्थान कर गए।


स्वर्गारोहण की यात्रा

पांडव और द्रौपदी साधु-संत की भाँति वनों और पर्वतों में चलते रहे।

  • सबसे पहले द्रौपदी गिर पड़ीं।
    भीम ने पूछा – “हे धर्मराज, द्रौपदी क्यों गिरीं?”
    युधिष्ठिर बोले – “क्योंकि वह अर्जुन से अधिक प्रेम करती थीं।”
  • फिर सहदेव गिरे।
    “क्योंकि उन्हें अपने ज्ञान पर अभिमान था।”
  • उसके बाद नकुल गिरे।
    “क्योंकि वे अपने सौंदर्य पर गर्व करते थे।”
  • फिर अर्जुन गिरे।
    “क्योंकि उन्हें अपने धनुर्विद्या पर घमंड था।”
  • अंत में भीम गिरे।
    “क्योंकि उन्हें अपने बल पर अभिमान था और वे भोजन के प्रति आसक्त थे।”

👉 केवल युधिष्ठिर आगे बढ़ते रहे।


धर्मराज युधिष्ठिर की परीक्षा

अंततः युधिष्ठिर के साथ केवल एक कुत्ता रह गया।
स्वर्ग के द्वार पर इंद्र ने आकर कहा –
👉 “यह कुत्ता स्वर्ग में नहीं आ सकता, इसे छोड़ दो।”

युधिष्ठिर बोले –
👉 “मैंने इसे आश्रय दिया है, इसे छोड़ना अधर्म होगा। मैं अकेला स्वर्ग नहीं जाऊँगा।”

तभी वह कुत्ता अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुआ –
वह स्वयं धर्मराज (यम) थे।
उन्होंने कहा –
👉 “हे युधिष्ठिर! तुम्हारी धर्मनिष्ठा अडिग है, इसलिए तुम सशरीर स्वर्ग जाओगे।”


निष्कर्ष

पांडवों की स्वर्गारोहण यात्रा बताती है कि अंततः अहंकार और आसक्ति ही पतन का कारण बनते हैं।
👉 केवल धर्म का पालन ही मनुष्य को अमर और अमरत्व की ओर ले जाता है।


पिछला भाग (भाग 22) : पांडवों का उत्तर जीवन और परीक्षित का जन्म
अगला भाग (भाग 24) : श्रीकृष्ण का प्रस्थान और यदुवंश का अंत


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