धृतराष्ट्र और गांधारी का विवाह

हस्तिनापुर के युवराज धृतराष्ट्र ने गांधारी से विवाह किया।
गांधारी अत्यंत पतिव्रता स्त्री थीं। जब उन्हें पता चला कि उनके पति जन्म से नेत्रहीन हैं, तो उन्होंने स्वयं भी आंखों पर पट्टी बाँध ली और आजीवन अपने पति की तरह अंधत्व का पालन किया।


गांधारी का गर्भ और 100 पुत्र

गांधारी को एक लंबा गर्भ रहा। जब बहुत समय बीत गया और संतान नहीं हुई, तो उन्होंने क्रोध में गर्भ पर प्रहार किया।
उससे एक मांस का लोथड़ा निकला।
ऋषि व्यास ने उस लोथड़े को 100 भागों में विभाजित किया और उन्हें घी से भरे कलशों में रखकर सुरक्षित किया।
समय आने पर उन सब से 100 पुत्र और 1 पुत्री (दु:शला) उत्पन्न हुए।

👉 यही आगे चलकर कौरव कहलाए। सबसे बड़ा पुत्र था – दुर्योधन


पांडु का विवाह और शाप

दूसरे भाई पांडु ने दो विवाह किए –

  1. कुंती से
  2. माद्री से

एक बार शिकार के समय पांडु ने अनजाने में ऋषि किंडम का वध कर दिया।
मरते समय ऋषि ने पांडु को शाप दिया –
👉 “यदि तुम स्त्री के साथ संबंध बनाओगे, तो तुरंत मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे।”

इस शाप के कारण पांडु संतान उत्पन्न नहीं कर सकते थे।


कुंती का वरदान और पांडवों का जन्म

कुंती को बचपन में ऋषि दुर्वासा से वरदान मिला था कि वे किसी भी देवता को बुलाकर संतान प्राप्त कर सकती हैं।

इस वरदान से कुंती और माद्री के पुत्र जन्मे –

  • धर्मदेव से – युधिष्ठिर
  • वायुदेव से – भीम
  • इंद्रदेव से – अर्जुन
  • अश्विनीकुमारों से – नकुल और सहदेव (माद्री से)

👉 ये पाँचों पांडव कहलाए।


पांडु की मृत्यु और हस्तिनापुर वापसी

पांडु ने वन में रहकर तपस्या का जीवन अपनाया।
लेकिन एक दिन माद्री के साथ संबंध बनाने पर शापवश उनकी मृत्यु हो गई।
इसके बाद कुंती पाँचों पांडवों को लेकर हस्तिनापुर लौट आईं।


पांडव और कौरव का बाल्यकाल

हस्तिनापुर में भीष्म पितामह ने सभी कौरव और पांडवों की देखभाल की।

  • भीम ने बचपन से ही अपनी अद्भुत शक्ति दिखाई।
  • दुर्योधन को भीम से विशेष ईर्ष्या थी। उसने कई बार भीम को मारने की योजना बनाई, लेकिन हर बार भीम बच गए।
  • विदुर और भीष्म ने सदैव पांडवों की रक्षा की।

द्रोणाचार्य से शिक्षा

बाद में सभी कौरव और पांडवों को द्रोणाचार्य के पास शिक्षा के लिए भेजा गया।

  • अर्जुन ने धनुर्विद्या में अद्वितीय स्थान प्राप्त किया और द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य बने।
  • भीम गदा युद्ध में माहिर हुए।
  • युधिष्ठिर ने नीति और धर्म का गहन ज्ञान पाया।
  • नकुल और सहदेव ने घुड़सवारी और औषधि विद्या सीखी।

निष्कर्ष

यहीं से कौरव और पांडवों की प्रतिद्वंद्विता शुरू होती है।

  • दुर्योधन की ईर्ष्या और द्वेष
  • भीम और अर्जुन की वीरता
  • युधिष्ठिर का धर्मनिष्ठ स्वभाव

👉 ये सब आगे चलकर महाभारत के महान युद्ध का आधार बने।


पिछला भाग (भाग 3) : विचित्रवीर्य, व्यास और धृतराष्ट्र–पांडु का जन्म
अगला भाग (भाग 5) : द्रोणाचार्य और शस्त्रविद्या – अर्जुन का श्रेष्ठ धनुर्धर बनना


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