नेपाल में तख़्तापलट पर चीन की प्रतिक्रिया (China’s Reaction on Nepal Coup)
परिचय (Introduction)
नेपाल की राजनीति एक बार फिर से बड़े संकट के दौर से गुजर रही है। हाल ही में हुए सत्ता परिवर्तन और कथित तख़्तापलट ने पूरे दक्षिण एशिया का ध्यान खींच लिया है। प्रधानमंत्री के अचानक इस्तीफ़े, संसद में उथल-पुथल, और राजधानी काठमांडू में सुरक्षा बलों व प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।
ऐसे समय में पड़ोसी और रणनीतिक साझेदार चीन (China) की प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से महत्वपूर्ण थी। बीजिंग ने पहली बार आधिकारिक बयान देते हुए इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट की है।
चीन का आधिकारिक बयान (China’s Official Statement)
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान (Lin Jian) ने प्रेस ब्रीफिंग में कहा:
- “हम आशा करते हैं कि नेपाल के सभी वर्ग घरेलू मुद्दों को सही ढंग से संभालेंगे।”
- “सामाजिक व्यवस्था और राष्ट्रीय स्थिरता जल्द बहाल होनी चाहिए।”
- नेपाल में मौजूद चीनी नागरिकों को अपनी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखने की सलाह दी गई।
गौर करने वाली बात यह है कि चीन ने पूरे घटनाक्रम को सीधे “तख़्तापलट (Coup)” कहने से परहेज़ किया और केवल शांति और स्थिरता पर ज़ोर दिया।
“तख़्तापलट” शब्द से परहेज़ क्यों? (Why Avoid the Word Coup?)
चीन की विदेश नीति का मुख्य आधार है —
- अन्य देशों के आंतरिक मामलों में सीधी दख़लअंदाज़ी न करना।
- स्थिरता और सामाजिक व्यवस्था को प्राथमिकता देना।
- अपने नागरिकों और निवेश की सुरक्षा को केंद्र में रखना।
इसी नीति के चलते चीन ने नेपाल की मौजूदा स्थिति पर अपेक्षाकृत “संतुलित” प्रतिक्रिया दी और किसी पक्ष को खुलकर समर्थन नहीं दिया।
नेपाल की घटनाओं का बैकग्राउंड (Background of Nepal Events)
नेपाल में हाल की घटनाएँ अचानक नहीं हुईं। पिछले कुछ महीनों से:
- सरकार और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ता जा रहा था।
- संसद में बहुमत को लेकर अनिश्चितता बनी हुई थी।
- युवाओं और छात्रों के बीच सरकार विरोधी प्रदर्शन तेज़ हुए।
- पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच काठमांडू और अन्य बड़े शहरों में हिंसक झड़पें हुईं।
जब हालात बिगड़े तो प्रधानमंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया और कुछ मीडिया रिपोर्टों में इसे “तख़्तापलट” की संज्ञा दी गई।
घटनाओं की टाइमलाइन (Timeline of Events)
- दिन 1 (सुबह): काठमांडू और पोखरा में छात्रों और विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ बड़े प्रदर्शन किए।
- दिन 1 (शाम): संसद में बहुमत खोने की खबर सामने आई, जिससे राजनीतिक संकट गहरा गया।
- दिन 2: पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं। कई जगह कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई।
- दिन 3: प्रधानमंत्री ने अचानक इस्तीफ़ा दे दिया। मीडिया ने इसे “तख़्तापलट जैसी स्थिति” कहा क्योंकि सत्ता का संतुलन तेजी से बदल गया।
- दिन 4: सेना और पुलिस ने संसद भवन और प्रमुख मंत्रालयों की सुरक्षा अपने हाथ में ले ली।
- दिन 5: विपक्ष ने नई सरकार बनाने का दावा पेश किया। देशभर में अस्थिरता और तनाव जारी रहा।
- दिन 6: चीन और भारत समेत कई पड़ोसी देशों ने आधिकारिक बयान जारी किए। चीन का बयान सबसे पहले नागरिक सुरक्षा और स्थिरता पर केंद्रित था।
यह टाइमलाइन दिखाती है कि घटनाएँ कितनी तेजी से बदलीं और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ कितनी जल्दी सामने आईं।
चीनी नागरिकों के लिए सुरक्षा अलर्ट (Security Alert for Chinese Citizens)
यह पहली बार नहीं है जब चीन ने नेपाल में अपने नागरिकों को सुरक्षा को लेकर चेतावनी दी है।
- पहले भी दूतावास ने संवेदनशील क्षेत्रों और सीमा इलाकों से दूर रहने की हिदायत जारी की थी।
- मौजूदा हालात में भी चीन ने नागरिकों से सावधानी बरतने और भीड़-भाड़ वाले इलाकों से बचने को कहा।
इससे साफ होता है कि बीजिंग की पहली प्राथमिकता अपने नागरिकों और निवेशों की सुरक्षा है।
नेपाल-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि (Background of Nepal-China Relations)
नेपाल और चीन के बीच दशकों से गहरे रिश्ते रहे हैं:
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत कई बड़े प्रोजेक्ट नेपाल में चल रहे हैं।
- चीन नेपाल का अहम व्यापारिक और पर्यटन साझेदार है।
- बीजिंग हमेशा चाहता है कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता बनी रहे ताकि उसके निवेश और रणनीतिक योजनाएँ प्रभावित न हों।
विशेषज्ञ दृष्टिकोण (Expert Analysis)
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि:
- चीन का संयमित बयान संकेत है कि वह नेपाल की राजनीति में किसी भी पक्ष का नाम लेकर समर्थन नहीं करेगा।
- बीजिंग का उद्देश्य केवल यही है कि नेपाल में स्थिर सरकार बने और वहां का माहौल निवेश और परियोजनाओं के अनुकूल रहे।
- चीन का रुख भारत और अन्य पड़ोसी देशों के लिए भी संदेश है कि वह क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
नेपाल की मौजूदा स्थिति न केवल देश के भीतर की राजनीति बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की कूटनीति पर असर डाल सकती है। चीन का बयान यह दिखाता है कि वह “तख़्तापलट” जैसे कठोर शब्दों से बचकर केवल स्थिरता, व्यवस्था और नागरिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि नेपाल की नई राजनीतिक परिस्थिति चीन-नेपाल रिश्तों और क्षेत्रीय संतुलन को किस दिशा में ले जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ – Frequently Asked Questions)
प्रश्न 1: क्या नेपाल में सच में तख़्तापलट (Coup) हुआ है?
उत्तर: आधिकारिक तौर पर नेपाल सरकार ने इसे “तख़्तापलट” नहीं कहा है। लेकिन प्रधानमंत्री के अचानक इस्तीफ़े और सुरक्षा बलों की बढ़ती भूमिका को लेकर कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसे “कूप जैसी स्थिति” बताया है।
प्रश्न 2: चीन ने नेपाल की मौजूदा स्थिति को लेकर क्या कहा?
उत्तर: चीन ने कहा कि नेपाल के सभी वर्ग घरेलू मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से संभालें और सामाजिक स्थिरता जल्द बहाल हो। साथ ही अपने नागरिकों को सुरक्षा के प्रति सतर्क रहने की सलाह दी।
प्रश्न 3: क्या चीन ने “तख़्तापलट” शब्द का इस्तेमाल किया?
उत्तर: नहीं, चीन ने सीधे “कूप” शब्द का प्रयोग नहीं किया। बीजिंग ने संतुलित भाषा अपनाई और केवल स्थिरता व सुरक्षा पर जोर दिया।
प्रश्न 4: नेपाल-चीन रिश्तों पर इस घटनाक्रम का क्या असर होगा?
उत्तर: अल्पकाल में स्थिति अस्थिर रह सकती है, लेकिन चीन चाहता है कि नेपाल में स्थिर सरकार बने ताकि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और अन्य प्रोजेक्ट प्रभावित न हों।
प्रश्न 5: क्या चीन की प्रतिक्रिया भारत और अन्य पड़ोसियों के लिए संदेश है?
उत्तर: हाँ, चीन का संयमित रुख यह दिखाता है कि वह किसी पक्ष का नाम लेकर समर्थन नहीं करेगा और क्षेत्रीय स्थिरता को ही प्राथमिकता देगा।