🌼 सनातन धर्म और चार युग का वर्णन 🌼

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥”
— भगवद्गीता (अध्याय 4, श्लोक 7)

🌺 सनातन धर्म का परिचय

सनातन धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। यह केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन जीने की कला, मानवता और सम्पूर्ण सृष्टि का मार्गदर्शन करने वाला धर्म है। समय को चार युगों में विभाजित किया गया है – सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। इन चारों का एक चक्र “महायुग” कहलाता है।

🕉️ सत्ययुग (कृतयुग)

  • सत्ययुग: 17,28,000 वर्ष, धर्म के चारों पाय पूर्ण।
  • मनुष्य की आयु: लगभग 1 लाख वर्ष।
  • अवतार: मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन।

🕉️ त्रेतायुग

  • त्रेतायुग: 12,96,000 वर्ष, धर्म के तीन पाय बचे।
  • मनुष्य की आयु: लगभग 10,000 वर्ष।
  • अवतार: भगवान श्रीराम।

🕉️ द्वापरयुग

  • द्वापरयुग: 8,64,000 वर्ष, धर्म के दो पाय बचे।
  • मनुष्य की आयु: लगभग 1,000 वर्ष।
  • अवतार: भगवान श्रीकृष्ण।

🕉️ कलियुग

  • कलियुग: 4,32,000 वर्ष, धर्म का केवल एक पाय।
  • मनुष्य की आयु: लगभग 100 वर्ष।
  • अवतार: भगवान कल्कि (अभी आना शेष है)।

📜 युग चक्र (महायुग)

सत्य + त्रेता + द्वापर + कली = एक महायुग।
एक महायुग = 43,20,000 वर्ष।
1000 महायुग = एक कल्प (ब्रह्मा का एक दिन) = 4.32 अरब वर्ष।

🕉️ सत्ययुग का विस्तार

सत्ययुग को कृतयुग भी कहा जाता है। यह चारों युगों में सबसे श्रेष्ठ और सबसे लंबा माना गया है। इस युग की कुल अवधि 17,28,000 वर्ष बताई जाती है। इस समय धर्म के चारों पाय — सत्य, तप, दया और शौच — पूर्ण रूप से स्थापित थे। लोग तपस्वी, सत्यप्रिय और धर्मनिष्ठ थे। मनुष्य की आयु लगभग 1 लाख वर्ष तक होती थी और उनका जीवन पूर्णतः सात्विक था।

लोग किसी प्रकार के पाप में लिप्त नहीं होते थे। किसी प्रकार का युद्ध, वैमनस्य या ईर्ष्या-द्वेष नहीं था। सभी लोग ब्रह्मज्ञान और ध्यान में लीन रहते थे। इसीलिए इसे “स्वर्णयुग” भी कहा गया। पवित्र वेदों का सीधा ज्ञान लोगों को उपलब्ध था। भगवान विष्णु ने इस युग में मत्स्य, कूर्म, वराह और नरसिंह जैसे दिव्य अवतार लिए।

🕉️ त्रेतायुग का विस्तार

त्रेतायुग की अवधि 12,96,000 वर्ष मानी जाती है। इस युग में धर्म के तीन पाय बचे और एक पाय कमज़ोर हो गया। इस कारण सत्य और धर्म की शक्ति थोड़ी क्षीण हो गई थी। मनुष्य की औसत आयु 10,000 वर्ष रह गई थी।

त्रेतायुग को विशेष रूप से भगवान श्रीराम के अवतार के कारण जाना जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने रावण का संहार कर धर्म की स्थापना की। इस युग में ही रामायण महाकाव्य की घटनाएँ घटित हुईं। इस समय समाज में यज्ञ, अनुष्ठान और वैदिक संस्कृति प्रबल थी।

🕉️ द्वापरयुग का विस्तार

द्वापरयुग की अवधि 8,64,000 वर्ष थी। इस युग में धर्म केवल दो पायों पर टिक गया था। पाप और अधर्म ने समाज में गहराई तक प्रवेश कर लिया था। मनुष्य की आयु लगभग 1,000 वर्ष रह गई थी।

इस युग में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। उन्होंने महाभारत युद्ध के माध्यम से धर्म की स्थापना की और अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया। यह उपदेश आज भी पूरे संसार के लिए मार्गदर्शक है। द्वापरयुग में महाभारत युद्ध जैसी विशाल घटना घटी जिसमें असंख्य वीरों ने प्राण त्यागे।

🕉️ कलियुग का विस्तार

कलियुग की अवधि 4,32,000 वर्ष है। इसका प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से माना जाता है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी का त्याग किया। अब तक लगभग 5,127 वर्ष बीत चुके हैं। कलियुग में धर्म का केवल एक पाय शेष है।

सत्य, दया और शौच जैसे गुण धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं। मनुष्य की औसत आयु 100 वर्ष से भी कम होती जा रही है। इस युग में लोभ, क्रोध, कलह, पाप और अधर्म का बोलबाला है। पुराणों के अनुसार कलियुग के अंत में भगवान विष्णु का दसवाँ अवतार “कल्कि” प्रकट होगा और धर्म की पुनः स्थापना करेंगे।

🌸 अंत में यही कहा जा सकता है कि सनातन धर्म का युगचक्र केवल समय का क्रम नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के उत्थान और पतन की गाथा भी है।
सत्ययुग से लेकर कलियुग तक यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि धर्म और अधर्म का संतुलन ही सृष्टि की मूल शक्ति है। जब अधर्म बढ़ता है, तब ईश्वर स्वयं अवतार लेकर धर्म की पुनः स्थापना करते हैं। 🌸

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