विष्णु पुराण अठारह महापुराणों में से एक है। इसमें भगवान विष्णु की महिमा, उनके अवतारों, सृष्टि की उत्पत्ति, धर्म और मोक्ष का गहन वर्णन है। यहाँ इसे 11 भागों में बाँटकर सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक क्रमवार कथा का आनंद ले सकें।
विष्णु पुराण की शुरुआत सृष्टि के रहस्य से होती है। प्रारम्भ में न दिन था न रात, न आकाश था न पृथ्वी, केवल एक शाश्वत चेतना थी। उसी से पंचमहाभूत — आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी — प्रकट हुए। महाविष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल पर ब्रह्मा का जन्म हुआ और उन्हें सृष्टि रचना का दायित्व सौंपा गया। त्रिमूर्ति की स्थापना इसी चरण में हुई — ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता), विष्णु (पालक) और शिव (संहारक)। यह भाग हमें सिखाता है कि संसार की हर गतिविधि एक दिव्य योजना का हिस्सा है। जीवन केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक नियमों पर भी टिका है।
मुख्य शिक्षा: सृष्टि का हर अंश परमात्मा की इच्छा से संचालित है।
जब प्रलय आया तो समस्त जीव-जगत जल में डूब गया। उस समय भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर मनु को बचाया और उन्हें नाव पर बैठाकर सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया। साथ ही वेदों को भी राक्षस से मुक्त कराया, ताकि ज्ञान नष्ट न हो। यह कथा हमें दिखाती है कि संकट के समय परमात्मा स्वयं अपने भक्तों और धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। मत्स्य अवतार केवल जीवों की रक्षा नहीं, बल्कि ज्ञान की रक्षा का भी प्रतीक है।
मुख्य शिक्षा: जब सब कुछ डूबता है, तब ईश्वर ही नाव बनकर सहारा देते हैं।
देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन करने लगे, परंतु मंदराचल पर्वत बार-बार डूबने लगा। तब भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुआ) का रूप लिया और पर्वत को अपनी पीठ पर स्थिर कर दिया। मंथन से अमृत, लक्ष्मी, धन्वंतरि और अनेक रत्न निकले। कूर्म अवतार दिखाता है कि संतुलन और सहयोग से ही महान फल प्राप्त होते हैं। बिना स्थिर आधार के कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता। यह कथा हमें धैर्य और सहयोग का महत्व सिखाती है।
मुख्य शिक्षा: धैर्य और सहयोग से ही अमृत फल मिलता है।
दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को पाताल में डुबो दिया था। तब भगवान विष्णु वराह (सूकर) रूप में प्रकट हुए। उन्होंने अपने दाँतों पर पृथ्वी को उठाकर पुनः आकाश पर स्थापित किया और दैत्य का वध किया। यह अवतार बताता है कि जब धरती पर संकट आता है, तब भगवान स्वयं उसके उद्धार के लिए अवतरित होते हैं। वराह अवतार केवल शक्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि यह भी दिखाता है कि धरती माता की रक्षा ईश्वर का पहला कर्तव्य है।
मुख्य शिक्षा: पृथ्वी और धर्म की रक्षा हेतु ईश्वर हर युग में अवतार लेते हैं।
हिरण्यकशिपु ने तप से वरदान पाया था कि वह न मनुष्य से मरेगा, न पशु से; न दिन में, न रात में; न अंदर, न बाहर; न अस्त्र से, न शस्त्र से। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। जब उसने अपने पुत्र को मारना चाहा तो भगवान विष्णु आधा मनुष्य–आधा सिंह (नरसिंह) रूप में प्रकट हुए। उन्होंने संध्या समय (न दिन, न रात), चौखट पर (न अंदर, न बाहर), अपने नखों से (न अस्त्र, न शस्त्र) हिरण्यकशिपु का वध किया। यह कथा दिखाती है कि ईश्वर अधर्म को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं करते।
मुख्य शिक्षा: अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है।
दैत्यराज बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। देवताओं की रक्षा हेतु भगवान विष्णु वामन (बौने ब्राह्मण) रूप में प्रकट हुए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि माँगी। पहले पग में पृथ्वी, दूसरे में आकाश नाप लिया। तीसरे पग के लिए बलि ने अपना शीश झुका दिया। इस प्रकार वामन ने बलि का अहंकार दूर कर दिया। यह कथा सिखाती है कि विनम्रता और धर्म से ही संतुलन बनता है। बलि ने अंततः भगवान को सब समर्पित कर दिया और महान भक्त कहलाए।
मुख्य शिक्षा: दान और विनम्रता से ही सच्चा महानता मिलती है।
जब क्षत्रियों ने अत्याचार करना शुरू किया और ब्राह्मणों पर अन्याय बढ़ गया, तब भगवान विष्णु ने परशुराम रूप लिया। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और उनके पास परशु (फरसा) था। उन्होंने 21 बार धरती को क्षत्रियों से मुक्त किया और धर्म की पुनः स्थापना की। यह अवतार हमें सिखाता है कि अन्याय सहना भी पाप है और समय आने पर अधर्म का संहार करना ही धर्म है। परशुराम आज भी अमर माने जाते हैं और महर्षियों में गिने जाते हैं।
मुख्य शिक्षा: अन्याय के विरुद्ध संघर्ष ही धर्म का पालन है।
अयोध्या में भगवान विष्णु राम रूप में अवतरित हुए। उन्होंने मर्यादा, सत्य और धर्म की स्थापना की। वनवास, सीता-हरण, सुग्रीव-हनुमान की मित्रता और अंततः रावण वध उनकी कथा के मुख्य प्रसंग हैं। राम अवतार हमें दिखाता है कि परिवार, समाज और राज्य सबका धर्म निभाना आवश्यक है। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया क्योंकि उन्होंने हर परिस्थिति में धर्म का पालन किया। उनकी कथा आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
मुख्य शिक्षा: मर्यादा और कर्तव्यपालन ही सच्चा धर्म है।
भगवान कृष्ण ने मथुरा और वृंदावन में जन्म लेकर अनेक लीलाएँ कीं। माखन चोरी, कालिया नाग मर्दन, गोवर्धन पूजा और कंस वध उनकी बाल लीलाओं के प्रमुख प्रसंग हैं। कृष्ण का बाल रूप प्रेम, चपलता और करुणा से भरा हुआ है। उनकी लीलाएँ हमें यह सिखाती हैं कि भक्ति सरल हृदय से करनी चाहिए। वे गोपियों के संग रास करते हुए भी भक्तों को भक्ति और प्रेम का महत्व बताते हैं।
मुख्य शिक्षा: प्रेम और भक्ति से ईश्वर सहज ही मिल जाते हैं।
महाभारत युद्ध में भगवान कृष्ण ने अर्जुन के सारथी बनकर गीता का उपदेश दिया। उन्होंने धर्म, कर्म, योग और मोक्ष का रहस्य समझाया। गीता का संदेश है — “कर्म करो, फल की चिंता मत करो।” कृष्ण ने कुरुक्षेत्र युद्ध के माध्यम से दिखाया कि धर्म की रक्षा के लिए कभी-कभी युद्ध भी आवश्यक है। यह अवतार हमें कर्मयोग और भक्ति का मार्ग दिखाता है।
मुख्य शिक्षा: निष्काम कर्म और धर्म पालन ही मुक्ति का मार्ग है।
कलियुग के अंत में जब अधर्म चरम सीमा पर होगा, तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेंगे। वे श्वेत घोड़े पर सवार होकर दुष्टों का संहार करेंगे और धर्म की पुनः स्थापना करेंगे। यह अवतार अभी आना शेष है। कल्कि अवतार हमें भविष्य की चेतावनी देता है कि यदि हम धर्म से विमुख होंगे तो संहार अवश्य होगा। यह कथा हमें धर्म पालन और भक्ति की ओर प्रेरित करती है ताकि हमें मोक्ष प्राप्त हो सके।
मुख्य शिक्षा: धर्म की अंतिम विजय और मोक्ष की प्राप्ति।
निष्कर्ष (Conclusion)
विष्णु पुराण केवल अवतारों की कथा नहीं, बल्कि यह जीवन की दिशा दिखाने वाला ग्रंथ है। 11 भागों में बाँटी यह कथा हमें बताती है कि जब भी अधर्म बढ़ता है, भगवान विष्णु विभिन्न रूपों में अवतार लेकर धर्म और सत्य की स्थापना करते हैं। इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि हर परिस्थिति में सत्य, भक्ति और धर्म का पालन करें।
👉 भाग 1 पढ़ें — परिचय और सृष्टि की रचना (Introduction & Creation)