🙏 श्री गणेश कथा — Ganesh Katha
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परिचय
श्री गणेश जी हिन्दू धर्म के प्रथम पूज्य देवता हैं। उन्हें विघ्नहर्ता, बुद्धि और विवेक का दाता तथा मंगलकर्ता कहा जाता है। किसी भी शुभ कार्य या अनुष्ठान की शुरुआत उनसे की जाती है। उनकी पूजा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जन्म कथा
पुराणों के अनुसार, माता पार्वती ने स्नान के समय अपने शरीर से निकले उबटन से एक बालक की आकृति बनाई और उसमें प्राण फूँक दिए। उन्होंने उसे द्वारपाल नियुक्त किया। उसी समय शिवजी लौटे और अंदर जाना चाहा। बालक ने उन्हें रोका। क्रोधित होकर शिवजी ने उसका मस्तक काट दिया। पार्वती शोकाकुल हो गईं और समस्त देवताओं ने शिव से बालक को पुनर्जीवित करने का आग्रह किया।
हाथी का सिर
शिवजी ने आदेश दिया कि उत्तर दिशा में मिलने वाले पहले प्राणी का सिर लाओ। गणों ने एक हाथी का सिर लाकर प्रस्तुत किया। शिवजी ने वह सिर बालक पर स्थापित कर उसे पुनर्जीवित किया। इस प्रकार गणेश जी का जन्म हुआ। पार्वती प्रसन्न हुईं और सभी देवताओं ने गणेश जी को प्रथम पूज्य घोषित किया।
गणेश जी का स्वरूप और प्रतीक
- हाथी का सिर — ज्ञान और दूरदर्शिता।
- बड़ी सूंड — लचीलापन और शक्ति।
- एक दंत — अच्छाई ग्रहण करना, बुराई त्यागना।
- मोदक — आत्मिक आनंद का प्रतीक।
- मूषक वाहन — अहंकार पर विजय।
गणेश जी का जन्म कब हुआ?
शास्त्रों और पुराणों के अनुसार गणेश जी का जन्म सतयुग में हुआ माना जाता है। यह वह युग है जिसे सत्य और धर्म का युग कहा जाता है। हिंदू समय गणना के अनुसार एक महायुग लगभग 43,20,000 वर्ष का होता है, जिसमें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग आते हैं। वर्तमान में हम कलियुग में हैं, जो लगभग 3102 ईसा पूर्व श्रीकृष्ण के स्वर्गारोहण से शुरू हुआ।
इस दृष्टि से गणेश जी का जन्म लाखों वर्ष पहले सतयुग में माना जा सकता है। हालाँकि, गणेश जी का स्वरूप केवल समय से बंधा नहीं है। उन्हें अनादि और अविनाशी कहा गया है। अर्थात वे सृष्टि की शुरुआत से ही विद्यमान हैं और हर युग में पूजनीय हैं।
👉 सरल शब्दों में: गणेश जी का जन्म सतयुग में हुआ था, यानी आज से लाखों वर्ष पहले। लेकिन वे केवल सतयुग तक सीमित नहीं, बल्कि हर युग में विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता के रूप में पूजे जाते हैं।
महाभारत और व्यासजी
ऋषि व्यास ने गणेश जी से महाभारत लिखवाने का निर्णय लिया। गणेश जी ने शर्त रखी कि वे बिना रुके लिखेंगे। व्यासजी ने कहा कि आप अर्थ समझे बिना नहीं लिखेंगे। कलम टूटने पर गणेश जी ने अपना दांत तोड़कर लिखना जारी रखा, इसलिए उन्हें ‘एकदंत’ कहा जाता है। यह प्रसंग गणेश जी की त्याग भावना और दृढ़ निश्चय को दर्शाता है।
परिक्रमा प्रसंग
देवताओं में यह विवाद हुआ कि कौन सबसे पहले पूज्य है। तय हुआ कि जो पृथ्वी की परिक्रमा पहले पूरी करेगा वही श्रेष्ठ कहलाएगा। कार्तिकेय तुरंत निकल पड़े, लेकिन गणेश जी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा की और कहा कि मेरे लिए आप ही तीनों लोक हैं। यह बुद्धिमत्ता देखकर देवताओं ने गणेश जी को प्रथम पूज्य माना।
अन्य प्रसिद्ध कथाएँ
गणेश जी से जुड़ी कई कथाएँ हैं। एक कथा के अनुसार, उन्होंने चंद्रमा को शाप दिया क्योंकि चंद्रमा ने उनका उपहास किया था। दूसरी कथा में, उन्होंने अपने भक्त की लाज रखी और उसके सभी विघ्न दूर किए। हर कथा इस बात को स्पष्ट करती है कि गणेश जी भक्तवत्सल और करुणामूर्ति हैं।
गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी का पर्व विशेष महत्व रखता है। महाराष्ट्र और देशभर में यह उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें लोग घरों और पंडालों में गणेश प्रतिमा स्थापित करते हैं, उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और दस दिन बाद विसर्जन करते हैं। यह पर्व सामाजिक एकता और सांस्कृतिक उत्साह का प्रतीक है।
आधुनिक समय में महत्व
आज गणेश जी केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान बन गए हैं। उनका स्वरूप प्रेरणा देता है कि जीवन में विवेक, धैर्य और भक्ति से हर बाधा को पार किया जा सकता है। गणेश उत्सव अब कला, संगीत और सामाजिक जागरूकता का भी माध्यम बन चुका है।
निष्कर्ष
गणेश जी की विस्तृत कथा हमें सिखाती है कि ज्ञान, विनम्रता और भक्ति से जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है। वे प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता हैं, जिनका स्मरण हर शुभ कार्य की सफलता की गारंटी है।