द्रोणाचार्य का हस्तिनापुर आगमन

हस्तिनापुर में जब कौरव और पांडव बड़े हुए तो भीष्म पितामह ने उनके लिए एक श्रेष्ठ गुरु की तलाश की।
वे द्रोणाचार्य को लेकर आए, जो महान ऋषि भृगु के वंशज और शस्त्रविद्या में अद्वितीय थे।
द्रोणाचार्य ने वचन लिया कि वे सभी राजकुमारों को समभाव से शिक्षा देंगे।


पांडव और कौरव की शिक्षा

द्रोणाचार्य के आश्रम में कौरव और पांडव दोनों ने युद्धकला की शिक्षा लेना शुरू किया।

  • भीम ने गदा और बल प्रयोग की कला सीखी।
  • दुर्योधन भी गदा युद्ध में निपुण हुआ।
  • युधिष्ठिर ने धर्म और नीति का ज्ञान प्राप्त किया।
  • नकुल और सहदेव ने अश्वविद्या और औषधि विद्या सीखी।
  • अर्जुन ने धनुर्विद्या में अपनी प्रतिभा से सभी को पीछे छोड़ दिया।

गुरु दक्षिणा और द्रोणाचार्य का वचन

द्रोणाचार्य ने सभी शिष्यों को शिक्षा दी, लेकिन अर्जुन पर उनकी विशेष कृपा रही।
उन्होंने कहा –
👉 “अर्जुन! तुम धनुर्विद्या में अद्वितीय हो। मैं तुम्हें यह वरदान देता हूँ कि तुम संसार में सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर बनोगे।”


एकलव्य की कथा

इसी समय निषादराज का पुत्र एकलव्य भी धनुर्विद्या सीखना चाहता था।
वह द्रोणाचार्य के आश्रम में आया, लेकिन द्रोण ने उसे शिष्य बनाने से इंकार कर दिया क्योंकि वह क्षत्रिय नहीं था।

एकलव्य ने द्रोण की मिट्टी की मूर्ति बनाकर स्वयं ही अभ्यास करना शुरू किया।
वह इतना निपुण हुआ कि पांडव भी उसके सामने कमजोर लगने लगे।
जब द्रोणाचार्य को यह पता चला, तो उन्होंने गुरुदक्षिणा में उसका अंगूठा माँग लिया।
👉 एकलव्य ने बिना हिचकिचाए अपना अंगूठा काटकर द्रोण को दे दिया।


अर्जुन का कौशल

द्रोणाचार्य ने अर्जुन को कई कठिन परीक्षाएँ दीं।
एक बार सभी शिष्य पक्षी की आँख पर निशाना साध रहे थे।
द्रोण ने पूछा – “तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?”

  • किसी ने कहा – पेड़,
  • किसी ने कहा – पत्ते,
  • अर्जुन ने कहा – “मुझे केवल पक्षी की आँख दिख रही है।”

👉 द्रोण ने प्रसन्न होकर कहा – “अर्जुन ही सच्चा धनुर्धर है।”


द्रोणाचार्य की गुरु दक्षिणा

द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों से गुरु दक्षिणा माँगी –
👉 “राजा द्रुपद को बंदी बनाकर मेरे सामने लाओ।”

सभी शिष्य द्रुपद पर आक्रमण करने गए।
पहले कौरव असफल हुए, फिर पांडवों ने द्रुपद को बंदी बना लिया और द्रोण के सामने प्रस्तुत किया।
द्रोणाचार्य ने द्रुपद से कहा –
👉 “अब हम दोनों बराबर हैं। आधा राज्य तुम्हारा और आधा मेरा।”


निष्कर्ष

इस प्रकार द्रोणाचार्य के मार्गदर्शन में पांडव और कौरव महान योद्धा बने।
लेकिन अर्जुन ने धनुर्विद्या में अपनी अनोखी एकाग्रता और परिश्रम से सबको पीछे छोड़ दिया।
👉 यही अर्जुन आगे चलकर महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा नायक बना।


पिछला भाग (भाग 4) : कौरव और पांडव का जन्म और बाल्यकाल
अगला भाग (भाग 6) : लाक्षागृह की घटना – पांडवों का बच निकलना


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *