कौरवों की ईर्ष्या
जैसे-जैसे पांडवों की लोकप्रियता बढ़ती गई, दुर्योधन और कौरवों की ईर्ष्या भी बढ़ती गई।
भीम की शक्ति, अर्जुन की धनुर्विद्या और युधिष्ठिर का धर्मप्रिय स्वभाव लोगों को पांडवों की ओर आकर्षित कर रहा था।
दुर्योधन को यह सहन नहीं हुआ और उसने पांडवों को समाप्त करने की योजना बनाई।
शकुनि की योजना
दुर्योधन के मामा शकुनि कुटिल बुद्धि के लिए प्रसिद्ध थे।
उन्होंने सलाह दी कि –
👉 “पांडवों को किसी षड्यंत्र से मारना ही एक उपाय है।”
तय हुआ कि पांडवों को एक सुंदर महल में भेजा जाएगा, जिसे मोम (लाख) से बनाया जाएगा।
इस महल को आग लगाकर पांडवों को जीवित जलाने की योजना बनाई गई।
लाक्षागृह का निर्माण
धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को वाराणावत तीर्थ पर भेजने का आदेश दिया।
वहाँ उनके लिए एक अद्भुत महल तैयार कराया गया, जो मोम, लाख और ज्वलनशील पदार्थों से बनाया गया था।
बाहरी रूप से वह अत्यंत भव्य दिखाई देता था, परंतु भीतर से वह ज्वलनशील था।
विदुर की चेतावनी
विदुर को यह षड्यंत्र पता था।
उन्होंने गुप्त भाषा में युधिष्ठिर को संकेत दिया –
👉 “आग से बचने का मार्ग केवल गुप्त सुरंग होती है।”
युधिष्ठिर ने विदुर का संकेत समझ लिया।
पांडवों की योजना
विदुर ने एक गुप्त खानकनी को भेजकर महल के नीचे एक सुरंग बनवाई।
पांडव और कुंती उस महल में रहने लगे, लेकिन सावधान रहे।
एक रात जब सब सो गए, तो पांडवों ने स्वयं महल में आग लगा दी और सुरंग के रास्ते निकल गए।
कौरवों का भ्रम
जब महल जल गया, तो सबको लगा कि पांडव और कुंती उसमें जलकर मर गए।
पूरा हस्तिनापुर शोकग्रस्त हो गया।
लेकिन वास्तव में पांडव सुरक्षित सुरंग के रास्ते बाहर निकलकर जंगल में पहुँच गए थे।
वन की ओर प्रस्थान
अब पांडवों ने छिपकर वनवास का जीवन शुरू किया।
यहीं से उनके जीवन की नई कथा आरंभ होती है, जिसमें वे द्रौपदी से मिलेंगे और आगे चलकर इंद्रप्रस्थ की स्थापना करेंगे।
निष्कर्ष
लाक्षागृह की घटना महाभारत का एक महत्वपूर्ण मोड़ है।
👉 इससे साबित होता है कि अन्याय और षड्यंत्र चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, धर्म की रक्षा अवश्य होती है।
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