पंचाल देश और द्रुपद

राजा द्रुपद, जिनसे द्रोणाचार्य ने अपना आधा राज्य ले लिया था, आगे चलकर उनके शत्रु बन गए।
उनकी पुत्री का नाम था द्रौपदी, जो अत्यंत रूपवती और तेजस्विनी थीं।
राजा द्रुपद ने उनके लिए एक स्वयंवर आयोजित किया, जिसमें भारतवर्ष के सभी राजकुमारों और महारथी योद्धाओं को आमंत्रित किया गया।


पांडवों का अज्ञातवास

लाक्षागृह से बच निकलने के बाद पांडव और कुंती गुप्त वेश में वनवास का जीवन व्यतीत कर रहे थे।
उन्हें द्रौपदी के स्वयंवर की सूचना मिली और वे ब्राह्मण वेश में वहाँ पहुँचे।


स्वयंवर की शर्त

द्रुपद ने स्वयंवर के लिए एक कठिन धनुष और एक चक्र बनाया था।
ऊँचाई पर घूमती हुई मछली लगी थी और नीचे पानी का पात्र रखा गया था।
👉 शर्त यह थी कि –
“जो भी योद्धा इस धनुष को चढ़ाकर, पानी में देखकर घूमती हुई मछली की आँख पर बाण मारेगा, वही द्रौपदी का वर बनेगा।”


महारथियों का असफल होना

कई महारथियों ने प्रयास किया –

  • कौरव,
  • शिशुपाल,
  • जरासंध,
  • कर्ण तक।

लेकिन कोई भी धनुष को चढ़ा नहीं पाया।
जब कर्ण ने प्रयास किया तो उसने धनुष चढ़ा लिया, परंतु द्रौपदी ने कहा –
👉 “मैं किसी सूतपुत्र से विवाह नहीं करूँगी।”
और कर्ण को अस्वीकार कर दिया।


अर्जुन का प्रयास और विजय

तब ब्राह्मण वेश में उपस्थित अर्जुन आगे बढ़े।
उन्होंने सहजता से धनुष उठाया, प्रत्यंचा चढ़ाई और पानी में देखकर घूमती हुई मछली की आँख पर बाण चला दिया।
👉 अर्जुन सफल हुए और स्वयंवर जीत लिया।


द्रौपदी का अर्जुन से विवाह

अर्जुन द्रौपदी को लेकर अपने आश्रम लौटे।
कुंती ने बिना देखे कहा –
👉 “जो भी लाए हो, उसे पाँचों भाई मिलकर बाँट लो।”
बाद में जब उन्हें पता चला कि यह द्रौपदी है, तो उन्होंने वचन का पालन करते हुए द्रौपदी को पाँचों पांडवों की पत्नी बना दिया।


निष्कर्ष

द्रौपदी का स्वयंवर महाभारत की कथा का एक अहम मोड़ है।
👉 इसी घटना से पांडवों का भाग्य पलटा और उन्हें एक ऐसी पत्नी मिली जो आगे चलकर महाभारत युद्ध की जड़ बनी।


पिछला भाग (भाग 6) : लाक्षागृह की घटना – पांडवों का बच निकलना
अगला भाग (भाग 8) : खांडवप्रस्थ से इंद्रप्रस्थ – पांडवों का राज्याभिषेक


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