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भाग 2 — मत्स्य अवतार कथा (Matsya Avatar Story)
“प्रलये मत्स्यरूपेण वेदान् रक्ष्यति केशवः।
हयग्रीवात्समुद्धृत्य सुतरां भूरिदर्शनः॥”

भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में मत्स्य अवतार पहला माना जाता है। यह कथा केवल एक प्रलय और जीवों की रक्षा की गाथा नहीं है, बल्कि यह ज्ञान और धर्म की रक्षा का प्रतीक भी है। जब जब संसार संकट में पड़ता है, भगवान विष्णु विभिन्न रूपों में अवतरित होकर धर्म और जीवन को बचाते हैं। मत्स्य अवतार इसी सिद्धांत का पहला उदाहरण है।

प्रलय का समय (The Time of Deluge)

एक समय ऐसा आया जब ब्रह्मा के दिन का अंत हुआ और प्रलय का आरम्भ हुआ। आकाश और पृथ्वी पर जल ही जल भर गया। पर्वत, वनस्पति, जीव-जंतु सब जलमग्न हो गए। केवल एक महामहिम पुरुष — मनु — प्रलय से पहले जीवित बचे। वे नदी के किनारे तपस्या और स्नान कर रहे थे। तभी एक छोटी मछली उनके करकमल में आ गई।

मनु ने मछली को उठाकर जलपात्र में डाल दिया। आश्चर्य की बात यह हुई कि वह मछली धीरे-धीरे बड़ी होती गई। छोटे पात्र से तालाब, फिर झील, फिर नदी, और अंततः समुद्र भी उसके लिए छोटा पड़ गया। तभी मछली ने अपना दिव्य रूप प्रकट किया और कहा — “हे मनु, मैं स्वयं विष्णु हूँ। आने वाले प्रलय से जीवों और वेदों की रक्षा करने के लिए मत्स्य रूप में आया हूँ।”

मनु और नाव (Manu and the Boat)

विष्णु ने मनु को आदेश दिया कि वे एक विशाल नाव तैयार करें। उसमें ऋषियों के साथ-साथ औषधियाँ, बीज, पशु-पक्षी और आवश्यक वस्तुएँ रखें ताकि प्रलय के बाद नई सृष्टि की शुरुआत हो सके। मनु ने यह आदेश मानकर नाव बनाई। जैसे ही प्रलय का जल बढ़ा, मनु और अन्य जीव उस नाव में बैठ गए। तभी मत्स्य रूपी विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने कहा — “हे मनु, इस नाव को मेरी शृंग (सींग) से बाँध दो।” नाव सुरक्षित रूप से प्रलय सागर में तैरती रही।

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन का संकट कितना भी बड़ा क्यों न हो, यदि हम ईश्वर की शरण में हैं तो हमें कभी डूबना नहीं पड़ता।

हयग्रीव और वेदों की रक्षा (Hayagriva and Protection of Vedas)

प्रलय के समय हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुराकर सागर में छिपा दिया था। वेद ही ज्ञान और धर्म का आधार हैं। यदि वे नष्ट हो जाते तो सृष्टि अज्ञान में डूब जाती।

मत्स्य रूपी विष्णु ने उस दैत्य का वध किया और वेदों को पुनः ब्रह्मा को सौंपा। इस प्रकार केवल जीवों की ही नहीं, ज्ञान और धर्म की भी रक्षा हुई। यह प्रसंग बताता है कि ईश्वर का पहला कर्तव्य धर्म और ज्ञान की रक्षा करना है।

मत्स्य का संदेश (Teachings of Matsya Avatar)

नाव को सुरक्षित ले जाते हुए भगवान विष्णु ने मनु को अनेक धर्मोपदेश दिए। उन्होंने बताया कि सृष्टि चक्र निरंतर चलता रहता है। हर प्रलय के बाद नई सृष्टि होती है। मनुष्य को चाहिए कि वह इस नश्वर संसार में केवल भौतिक वस्तुओं के पीछे न भागे, बल्कि धर्म, भक्ति और ज्ञान को सर्वोपरि माने।

मत्स्य अवतार हमें यह भी सिखाता है कि जब जीवन डगमगाए तो हमें ईश्वर की नाव पकड़ लेनी चाहिए। वह नाव हमें मोक्ष और शांति के तट तक पहुँचाती है।

दार्शनिक दृष्टि (Philosophical View)

मत्स्य अवतार का दार्शनिक अर्थ यह है कि “जल” = अज्ञान और “नाव” = धर्म। जब संसार अज्ञान (जल) में डूबता है, तब ईश्वर स्वयं धर्म की नाव बनकर जीवों को सुरक्षित तट पर पहुँचाते हैं। यह कथा केवल पुराणिक गाथा नहीं, बल्कि जीवन जीने की गहरी शिक्षा भी है।

निष्कर्ष (Conclusion)

मत्स्य अवतार कथा हमें यह सिखाती है कि ईश्वर केवल जीवों की रक्षा नहीं करते, बल्कि ज्ञान और धर्म की रक्षा के लिए भी अवतरित होते हैं। जब संसार प्रलय में डूब रहा था, तब विष्णु ने मत्स्य रूप लेकर मनु, जीवों और वेदों की रक्षा की। यही कारण है कि मत्स्य अवतार को “ज्ञान और धर्म की नाव” कहा जाता है।

“मत्स्यरूपेण जगत्प्रलये संरक्षितं जगत्।
धर्मस्य च परित्राणं विष्णोस्तद्भवतोऽवतारः॥”

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